This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 51: The Research Scholar
बात उन दिनों की है जब पीएचडी या रिसर्च करने के लिए नेट क्वालीफाई होने की अनिवार्यता नही थी। अभागे मिश्रा इकोनॉमिक्स के अति मेधावी छात्र थे और पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद रिसर्च के क्षेत्र में जाने की उनकी बड़ी तमन्ना थी। इसी क्रम में राजधानी के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इंटरव्यू में अपने रिसर्च टॉपिक के साथ उन्हें और अन्य अभ्यर्थियों को बुलाया गया। 2 ही सीटें थी सो जंग आसान तो नही थी। मिश्रा जी ने "Role of Economics in the era of Automation & Artificial Intelligence" नामक टॉपिक लिया जो उस दौरान काफी नया था । 5 लोगों के पैनल वाले इंटरव्यू में सिर्फ साउथ साइड से आये हुए गुरुजी को छोड़कर बाकी सबका मुँह बिचका हुआ था टॉपिक सुनकर। "अमा ये कौन सा रिसर्च टॉपिक है। ये कोई हॉलीवुड की फ़िल्म लिखने आये हो क्या।" मिश्रा जी ने तमाम तथ्य पेश किए लेकिन गुरु लोग तो एडम स्मिथ, मार्शल इत्यादि को ही हर उत्तर में सुनना चाहते थे। खैर फाइनल रिजल्ट में तो उनका नही हुआ लेकिन बाद में किसी गुरु जी के दूर के selected रिश्तेदार के ऑस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी में दाखिला हो जाने से उनका वेटिंग लिस्ट में हो गया। और इसी के साथ शुरू हुआ शोषण और बेज्जती का वो अंतहीन दौर जिंसमे पहले तो मिश्रा जी को अपने रिसर्च टॉपिक के साथ समझौता करना पड़ा और फिर बाकी पूरा टाइम गुरु जी के बच्चों को स्कूल से लाने ले जाने , सब्जी भाजी खरीद कर लाने, गुरु जी का पैर दबाने, किसी भी विजिट पे गुरु जी का थैला ढोने इत्यादि रिसर्च करने में बीतता गया। 5 साल बीत गए, इतना सब होने के बावजूद भी मिश्रा जी ने किसी तरह कड़ी मेहनत करके गुरु जी द्वारा दिए गए टॉपिक पर बेहतरीन और Original Thesis लिख दी। लेकिन मिश्रा जी को असली झटका तो तब लगा जब उन्ही की Thesis की हूबहू नकल करके गुरु जी के दामाद को PHD डिग्री मिल गई और कालान्तर में दामाद जी असिस्टेंट प्रोफेसर भी बन गए वहीं आज मिश्रा जी 40 की उम्र तक पहुंचने वाले है और अभी वो गुरु जी के कल के Guest Lecture के लिए Presentation बना रहे है जिसका टॉपिक है "Why India is backward in Research"
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