कहानी 59: I-Card
मैं पुलिस विभाग में Revenue Officer हुआ करता था और मैनेजमेंट को पैसे बचाने वाले सुझाव देना मेरा परम कर्तव्य। एक बार सभी कर्मचारियों के लिए नए आई कार्ड बनवाने का प्रस्ताव आया जिंसमे धन की बचत सम्बंधित सुझाव मांगे जाने पर मैंने निम्न सुझाव दिए
1. Color का कम से कम प्रयोग और Logo थोड़ा छोटा ताकि Color प्रिंट की कॉस्ट कम आये
2. पद नाम पूरा लिखने की बजाए शॉर्टकट मसलन सब इंस्पेक्टर का SI, Revenue Officer का RO इत्यादि ताकि Word प्रिंटिंग कॉस्ट कम आये
भाई मैनजमेंट को सुझाव पसंद आ गया और मुझे Annual Performance Report में Outstanding मिला सो अलग।
खैर एक बार मैं ऐसे ही दक्षिण भारत घूमने गया था । वापसी की ट्रेन 3 घण्टे लेट थी तो Waiting Room में इन्तेजार करने लगा और इसी बीच नींद ने आगोश में ले लिया। आंख खुली तो देखा ट्रेन सामने से निकल रही है और प्लेटफार्म छोड़ने वाली है। मैं दौड़ के पकड़ लिया और किसी डिब्बे में चढ़ गया। ट्रेन स्पीड पकड़ चुकी थी और तभी मुझे टीटी महोदय ने घेर लिया।
"हाँ भाई टिकट दिखाओ"
मैंने e-टिकट दिखाने के लिए मोबाइल निकालने के लिए जेब मे हाथ डाला तो पता चला मोबाइल गायब है।
"मोबाइल में टिकट था मोबाइल चोरी हो गया है"
नाम और सीट नम्बर बताया तो पता चला उसपे कोई और बैठा हुआ था और वो उसी की सीट थी। टीटी महोदय ने अवगत कराया कि भइये गलत ट्रेन में चढ़ गए हो पेनल्टी कटेगी। मैने पैसे के लिए जेब मे हाथ डाला तो पता चला पर्स में पैसा, ATM सब गायब है सिवाय ID Card के। मैंने टीटी महोदय से विनती की कि भैया सब खो गया है, मैं भी सरकारी कर्मचारी हूँ और ये कहते हुए मैंने उसे अपना ID Card दिखाया जिसपे RO लिखा था और छोटा सा logo बिना चश्मा के Acquagaurd का logo लग रहा था। बस फिर क्या था, GRP, RPF सब आ गए औऱ सबके एक हाथ मेरे कॉलर पर दूसरे मेरे गाल, पीठ इत्यादि स्थानों पर थे। मैं चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि भइया मैं RO बेचने वाला नही हूँ लेकिन शायद गलतफहमियां अपने चरम पे थी।
तभी मेरी आँख वास्तव में खुली और देखा तो पता चला मैं वेटिंग रूम में ही था और अभी भी ट्रेन को आने में 1 घण्टा शेष था। मैंने तुरंत चेक किया तो मोबाइल यथास्थान था और पर्स में पैसे भी पूरे। "सपना था" - कहते हुए मैने सांस ली। जेब मे पुराना i-Card पड़ा था जिस पे Revenue Officer लिखा था और बड़ा सा लोगो लगा था - जिसे ट्रेन के आने तक मैं निहार ही रहा था।
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नीलेश मिश्रा
मैं पुलिस विभाग में Revenue Officer हुआ करता था और मैनेजमेंट को पैसे बचाने वाले सुझाव देना मेरा परम कर्तव्य। एक बार सभी कर्मचारियों के लिए नए आई कार्ड बनवाने का प्रस्ताव आया जिंसमे धन की बचत सम्बंधित सुझाव मांगे जाने पर मैंने निम्न सुझाव दिए
1. Color का कम से कम प्रयोग और Logo थोड़ा छोटा ताकि Color प्रिंट की कॉस्ट कम आये
2. पद नाम पूरा लिखने की बजाए शॉर्टकट मसलन सब इंस्पेक्टर का SI, Revenue Officer का RO इत्यादि ताकि Word प्रिंटिंग कॉस्ट कम आये
भाई मैनजमेंट को सुझाव पसंद आ गया और मुझे Annual Performance Report में Outstanding मिला सो अलग।
खैर एक बार मैं ऐसे ही दक्षिण भारत घूमने गया था । वापसी की ट्रेन 3 घण्टे लेट थी तो Waiting Room में इन्तेजार करने लगा और इसी बीच नींद ने आगोश में ले लिया। आंख खुली तो देखा ट्रेन सामने से निकल रही है और प्लेटफार्म छोड़ने वाली है। मैं दौड़ के पकड़ लिया और किसी डिब्बे में चढ़ गया। ट्रेन स्पीड पकड़ चुकी थी और तभी मुझे टीटी महोदय ने घेर लिया।
"हाँ भाई टिकट दिखाओ"
मैंने e-टिकट दिखाने के लिए मोबाइल निकालने के लिए जेब मे हाथ डाला तो पता चला मोबाइल गायब है।
"मोबाइल में टिकट था मोबाइल चोरी हो गया है"
नाम और सीट नम्बर बताया तो पता चला उसपे कोई और बैठा हुआ था और वो उसी की सीट थी। टीटी महोदय ने अवगत कराया कि भइये गलत ट्रेन में चढ़ गए हो पेनल्टी कटेगी। मैने पैसे के लिए जेब मे हाथ डाला तो पता चला पर्स में पैसा, ATM सब गायब है सिवाय ID Card के। मैंने टीटी महोदय से विनती की कि भैया सब खो गया है, मैं भी सरकारी कर्मचारी हूँ और ये कहते हुए मैंने उसे अपना ID Card दिखाया जिसपे RO लिखा था और छोटा सा logo बिना चश्मा के Acquagaurd का logo लग रहा था। बस फिर क्या था, GRP, RPF सब आ गए औऱ सबके एक हाथ मेरे कॉलर पर दूसरे मेरे गाल, पीठ इत्यादि स्थानों पर थे। मैं चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि भइया मैं RO बेचने वाला नही हूँ लेकिन शायद गलतफहमियां अपने चरम पे थी।
तभी मेरी आँख वास्तव में खुली और देखा तो पता चला मैं वेटिंग रूम में ही था और अभी भी ट्रेन को आने में 1 घण्टा शेष था। मैंने तुरंत चेक किया तो मोबाइल यथास्थान था और पर्स में पैसे भी पूरे। "सपना था" - कहते हुए मैने सांस ली। जेब मे पुराना i-Card पड़ा था जिस पे Revenue Officer लिखा था और बड़ा सा लोगो लगा था - जिसे ट्रेन के आने तक मैं निहार ही रहा था।
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नीलेश मिश्रा
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