This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 61: गुलाम सिंह आजाद
60 वाट का बल्ब धीरे धीरे जुगजुगाते हुए अपनी अंतिम सांसे
गिन रहा था। धूल से सनी फाइलों से भरे उस कमरे में समझ नही आ रहा था कि ये
कमरा धूल रखने के लिए बनवाया गया था या फ़ाइलें। पूछते पाछते किसी तरह कमरे
में फाइलों के गलियारों से होता हुआ मैं गर्भ गृह में पहुंचा जहां कुछ लोगो
की भीड़ एक जनाब को घेरे खड़ी थी औऱ मातृभाषा में दी जाने वाली नाना प्रकार
की गालियां स्पष्ट सुनाई दे रही थीं लेकिन तमाम दुनियादारी से विरक्त वो
महापुरुष पूरी तल्लीनता के साथ ऊपर कभी न चलने वाले बाबा आदम के जमाने के
पंखे को निहार रहे थे। यही गुलाम बाबू थे जिनसे मुझे काम था। 2-3 बार आवाज
लगाई लेकिन उनकी तल्लीनता भंग नही कर सका। "साला कामचोर , मुफ्त की सैलरी
ले रहा है" कहते हुए उन ठेकेदारों की भीङ में से एक आदमी ने गुलाम बाबू का
कालर पकड़ लिया। मुझे बहुत अटपटा लगा, खुद के ऑफिस में इतनी जिल्लत! मैंने
बगल में पैसा मुट्ठी में बांधे किसी ठेकेदार की कोई फ़ाइल ढूंढते हुए चपरासी
से कहा "अरे यार तुम्हारे बाबू जी की कालर पकड़े है कोई और तुम कुछ कर ही
नही रहे" ।
"हरामी आदमी है साला । बहुत बड़ा ईमानदार बनता था, पा गए प्रसाद"- चपरासी बड़बड़ाया।
बहरहाल
मुझे ज्यादा कुछ समझ नही आया और काम बनने की क्षीण सम्भावना देख कर मैं घर
वापस लौट आया। अगले दिन फिर वहीं पहुंचा तो पता चला गुलाम बाबू त्यागपत्र
दे चुके थे। कौतूहल वश मैंने उनके बारे में विस्तृत जानकारी की तो पता चला
कि गुलाम बाबू काफी प्रतिभाशाली व्यक्ति थे औऱ बहुत मन लगा कर काम करते थे
जब विभाग में आये थे लेकिन बेईमानो के बीच ईमानदारी करने चलिएगा तो कब तक
बचिएगा। साहब के किसी खास ठेकेदार का कहना नही माने तो उनके कमरे से कोई
फ़ाइल गायब करवा दी गई और पा गए प्रसाद (सजा)।
मैं भी
भुक्तभोगी था इसलिए पहुँच गया उनके घर औऱ दे दिया गीता का ज्ञान की भइया
त्यागपत्र दे के अपने को कष्ट क्यों देना। बाबू जी को बात समझ आ गई।
त्यागपत्र वापस लिए। और मेरा काम करवाए। हमने भी प्रॉपर्टी डीलिंग का पार्ट
टाइम काम उन्हें सिखा दिया । तब लखनऊ शहर में IT City और तमाम नए
प्रोजेक्ट पास होने के कारण प्रापर्टी व्यवसाय में भारी मुनाफा हो रहा था।
दुख के दिन बहुरे, देखते ही देखते जनाब करोड़पति हो गए। अब बाबू जी अधिकांश
समय Leave Without Pay रहते हैं और विभाग त्रस्त क्योंकि न उनकी जगह किसी
को लाया जा सकता है और न किसी "चहेते" का काम ही करवाया जा सकता है।
Inquiry और Chargesheet का नाम सुनकर आजकल गुलाम बाबू हंसने लगते हैं
क्योंकि शायद अब वो सरकारी तंत्र के भय से "आजाद" हो गए हैं।
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नीलेश मिश्रा
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