This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 63: व्यवस्था
"नोटिस
लल्लू दबंग, प्रधान, ग्राम अक्लपुरवा, पोस्ट जलवा, जिला अज्ञातनगर।
मुझे यह कहने का आदेश प्राप्त हुआ है कि आप फला दिनांक को उच्च न्यायालय के कक्ष संख्या 4 में उपस्थित हों।"
नीचे कोर्ट की चिर परिचित मोहर और इस तरह की नोटिस देखते ही प्रधान जी के होश फाख्ता हो गए और उन्हें अपने सारे कर्म और कांड याद आने लगे। जिले की बात होती तो सब "डील" हो जाता। लेकिन यहां मुद्दा कुछ और था। सभी लोकल ज्ञानियों से मंत्रणा करने के बाद निष्कर्ष ये निकला कि पूरे भौकाल में जाया जाए ताकि सामने वाला हल्के में न ले।
इंनोवा में सवार 2 दुनाली धारी रक्षकों को लेकर प्रधान जी का कारवां चल दिया मंजिल की ओर। पूरे लव लश्कर के साथ जब प्रधान जी न्यायालय के बाहर पार्किंग के पास पहुंचे तो बगल से जाते वकील साहब को नोटिस दिखा कर अपनी दबंग स्टाइल में पूंछ लिए कि "ये देख के बताओ जरा क्या करना है इसका"
वकील साहब ने नोटिस देख कर 2-3 तरह का मुंह बनाया औऱ फिर बताया कि इसमें पहले एक एफिडेविट बनेगा, 2 स्वतंत्र गवाहों के दस्तखत होंगे जो आपको जानते हो लेकिन आपके परिचित न हों, 200 रुपये का ब्लैंक स्टैम्प पेपर लगेगा और बाकी "ऑफिस खर्च" और ये सब काम मैं करवा दूंगा लेकिन 5000 रुपये मेरी फीस लगेगी । प्रधान जी हैरान थे ।
"अरे यार मेरे पास ज्यादा वक्त नही है। हमारा काम कराओ । पैसा का चिंता मत करो हम सब दे देंगे । "
और फिर 3 घंटे में एफिडेविट से लेकर स्टाम्प पेपर में वकील साहब ने 40-50 हजार रुपये खर्च करवा दिए। "अब क्या बचा" - प्रधान जी ने पूछा
"अरे अभी तो ऑफिस खर्च वाला काम बचा ही है। अभी ठसाठस भरे कमरे से आपकी फ़ाइल निकलवाना है, काउंटर लगाना है, फ़ाइल को मंजिल तक पहुंचवाना है, फोटोकॉपी, रेजॉइंडर, रिमाइंडर, लहसुन प्याज बहुत कुछ बचा है ।"
अबकी बार प्रधान जी के माथे पर पसीना देखा जा सकता था।
"कितना और लगेगा"
"देखिए प्रधान जी मेरी तो वही 5000 फीस है, जो लगना है वो वही ऑफिस वाले लेंगे, 70-80 हजार मान के चलिए"
"अरे इतना कैसे"
"सोच लीजिए प्रधान जी, नोटिस है, कुछ भी रुक गया तो अवमानना में जेल जाओगे"
अब ओखली में सिर दे ही दिया था, सो प्रधान जी तैयार हो गए। 2 घण्टे बाद सब निपटा के 3 पेज का कोई कागज हाथ मे लिए वकील साहब ने प्रधान जी को खुशी से बताया कि चलिए आपका back office work हो गया है अब सिर्फ कक्ष संख्या 4 में उपस्थित होना ही बचा है। प्रधान जी औऱ वकील साहब दोनों उक्त कक्ष में पहुंचे । उन्हें देखते ही कर्मचारी तिलमिला उठा। "अब नही हो पाएगा। कल आना। time-up"
वकील साहब ने साम और दाम का प्रयोग कर time-down करवा लिया। प्रधान जी की उपस्थिति नोट की गई और किसी निवास प्रमाण पत्र को दिखा कर पूछा गया कि क्या ये आपके हस्ताक्षर है - अगर हैं तो हाँ बोलिए केस रफ़ा दफा हो और नही हैं तो बताइए, फिर इन्क्वायरी शुरू करवाई जाएगी और आपको 1 महीने बाद आना होगा गवाही देने के लिए। प्रधान जी ने हस्ताक्षर देखा , उनके नही थे, लेकिन फिर आने की बात से ही उनका बीपी 200 के पार चला गया। सारी कैलकुलेशन के बाद उन्होंने "हां ये मेरे ही हस्ताक्षर हैं" कह कर मामले को रफा दफा करने में ही अपनी भलाई समझी।
रास्ते मे उनके चेलों ने जब पूछा "परधान जी, मजाक मजाक में खर्चा बहुत हो गया"
"हम्म। व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी। लगता है सड़क के गड्ढे भरवाने का समय आ गया है"
--
नीलेश मिश्रा
(विशेष आभार - Abhinav Sirohi)
"नोटिस
लल्लू दबंग, प्रधान, ग्राम अक्लपुरवा, पोस्ट जलवा, जिला अज्ञातनगर।
मुझे यह कहने का आदेश प्राप्त हुआ है कि आप फला दिनांक को उच्च न्यायालय के कक्ष संख्या 4 में उपस्थित हों।"
नीचे कोर्ट की चिर परिचित मोहर और इस तरह की नोटिस देखते ही प्रधान जी के होश फाख्ता हो गए और उन्हें अपने सारे कर्म और कांड याद आने लगे। जिले की बात होती तो सब "डील" हो जाता। लेकिन यहां मुद्दा कुछ और था। सभी लोकल ज्ञानियों से मंत्रणा करने के बाद निष्कर्ष ये निकला कि पूरे भौकाल में जाया जाए ताकि सामने वाला हल्के में न ले।
इंनोवा में सवार 2 दुनाली धारी रक्षकों को लेकर प्रधान जी का कारवां चल दिया मंजिल की ओर। पूरे लव लश्कर के साथ जब प्रधान जी न्यायालय के बाहर पार्किंग के पास पहुंचे तो बगल से जाते वकील साहब को नोटिस दिखा कर अपनी दबंग स्टाइल में पूंछ लिए कि "ये देख के बताओ जरा क्या करना है इसका"
वकील साहब ने नोटिस देख कर 2-3 तरह का मुंह बनाया औऱ फिर बताया कि इसमें पहले एक एफिडेविट बनेगा, 2 स्वतंत्र गवाहों के दस्तखत होंगे जो आपको जानते हो लेकिन आपके परिचित न हों, 200 रुपये का ब्लैंक स्टैम्प पेपर लगेगा और बाकी "ऑफिस खर्च" और ये सब काम मैं करवा दूंगा लेकिन 5000 रुपये मेरी फीस लगेगी । प्रधान जी हैरान थे ।
"अरे यार मेरे पास ज्यादा वक्त नही है। हमारा काम कराओ । पैसा का चिंता मत करो हम सब दे देंगे । "
और फिर 3 घंटे में एफिडेविट से लेकर स्टाम्प पेपर में वकील साहब ने 40-50 हजार रुपये खर्च करवा दिए। "अब क्या बचा" - प्रधान जी ने पूछा
"अरे अभी तो ऑफिस खर्च वाला काम बचा ही है। अभी ठसाठस भरे कमरे से आपकी फ़ाइल निकलवाना है, काउंटर लगाना है, फ़ाइल को मंजिल तक पहुंचवाना है, फोटोकॉपी, रेजॉइंडर, रिमाइंडर, लहसुन प्याज बहुत कुछ बचा है ।"
अबकी बार प्रधान जी के माथे पर पसीना देखा जा सकता था।
"कितना और लगेगा"
"देखिए प्रधान जी मेरी तो वही 5000 फीस है, जो लगना है वो वही ऑफिस वाले लेंगे, 70-80 हजार मान के चलिए"
"अरे इतना कैसे"
"सोच लीजिए प्रधान जी, नोटिस है, कुछ भी रुक गया तो अवमानना में जेल जाओगे"
अब ओखली में सिर दे ही दिया था, सो प्रधान जी तैयार हो गए। 2 घण्टे बाद सब निपटा के 3 पेज का कोई कागज हाथ मे लिए वकील साहब ने प्रधान जी को खुशी से बताया कि चलिए आपका back office work हो गया है अब सिर्फ कक्ष संख्या 4 में उपस्थित होना ही बचा है। प्रधान जी औऱ वकील साहब दोनों उक्त कक्ष में पहुंचे । उन्हें देखते ही कर्मचारी तिलमिला उठा। "अब नही हो पाएगा। कल आना। time-up"
वकील साहब ने साम और दाम का प्रयोग कर time-down करवा लिया। प्रधान जी की उपस्थिति नोट की गई और किसी निवास प्रमाण पत्र को दिखा कर पूछा गया कि क्या ये आपके हस्ताक्षर है - अगर हैं तो हाँ बोलिए केस रफ़ा दफा हो और नही हैं तो बताइए, फिर इन्क्वायरी शुरू करवाई जाएगी और आपको 1 महीने बाद आना होगा गवाही देने के लिए। प्रधान जी ने हस्ताक्षर देखा , उनके नही थे, लेकिन फिर आने की बात से ही उनका बीपी 200 के पार चला गया। सारी कैलकुलेशन के बाद उन्होंने "हां ये मेरे ही हस्ताक्षर हैं" कह कर मामले को रफा दफा करने में ही अपनी भलाई समझी।
रास्ते मे उनके चेलों ने जब पूछा "परधान जी, मजाक मजाक में खर्चा बहुत हो गया"
"हम्म। व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी। लगता है सड़क के गड्ढे भरवाने का समय आ गया है"
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नीलेश मिश्रा
(विशेष आभार - Abhinav Sirohi)
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