This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 64: स्वतंत्र मिश्रा
ये उस दौर की बात है जब मार्क जुकरबर्ग महोदय दिमाग की गतिविधियों को माप कर सिर्फ सोच कर टाइप करने वाली तकनीक को मार्केट में ला चुके थे। और इसके 2 वर्षो के भीतर ही इसी तकनीक को और परिष्कृत करके किसी देश के कुछ अतिउत्साही देशी इंजीनयरों द्वारा ऐसी तकनीक ईजाद की गई जिससे बिना व्यक्ति को छुए 100 मीटर दूर से ही उसके Brain Signals को detect करके वो क्या सोच रहा है ये पता लगाया जा सकता था। सरकार को ये तकनीक पसंद आ गई और इसे बड़े स्तर पर लागू करने की योजना बनाई गई। इसके अंतर्गत नैनो तकनीक का प्रयोग कर सभी नागरिकों के शरीर मे ऐसी सूक्ष्म डिवाइस इंजेक्ट की गई जो उनके आधार संख्या को ब्रॉडकास्ट करती रहती थी। एक Pre-Crime Department की स्थापना की गई जिसका कार्य था लोगों के सोचने के पैटर्न और उनके विचारों को monitor करना और देश विरोधी विचारों को उनके कार्यान्वयन के पहले ही रोकना और गिरफ्तार करके मुकदमा चलाना। इस योजना के लागू होने के तात्कालिक फायदे बहुत मिले यथा अपराधों में कमी, आतंकवाद और उग्रवाद का समापन इत्यादि लेकिन कुछ ही समय बाद देश मे दम घोटू माहौल बनने लगा।लड़को का तो बहुत बुरा हाल था क्योंकि अपने Action को तो वो एक पल को नियंत्रित कर भी ले, लेकिन मन के विचारों का क्या करें। हद तो तब हो गई जब चंगू पांडे जैसे सीधे मानुष जो दिन भर घर का बर्तन मांजने और सब्जी काटने का काम किंया करते थे, को दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के आरोप में अंदर कर दिया गया क्योंकि एक बार पत्नी की गलियों से तंग आकर मन मे वो उन्हें पीटने का ख्याल जो ले आए। इसी बीच ऊपर से निर्देश आये की सरकार विरोधी विचारधारा को भी इस डिपार्टमेंट के अंतर्गत लाया जाए। बस फिर क्या था अब फेसबूक पर सरकार विरोधी पोस्ट लाइक करने पर भी लोग जेल में जाने लग गए। जेल के बाहर और अंदर रहने वाले नागरिकों का अनुपात इतना बिगड़ गया कि 10 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले एक नए राज्य "कारागार प्रदेश" की स्थापना करनी पड़ गई। ये देख कर जनता ने चुनावों के द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने का निश्चय किया। लेकिन भइया सरकार तो अब सबके मन की बात जानती थी। सो सशस्त्र आंतरिक विद्रोह के आधार पर देश मे आपातकाल लगा दिया गया।
आज एक दशक बीत चुका है इस बात को और कारागार प्रदेश का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 99% हो चुका है। कहते है कि जेल का स्वरूप बड़ा आधुनिक है। लोग इन जेलों में काम करते हैं, फसल पैदा करते हैं, खरीदते बेचते हैं बस अपने मन का सोच नही सकते।
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नीलेश मिश्रा
ये उस दौर की बात है जब मार्क जुकरबर्ग महोदय दिमाग की गतिविधियों को माप कर सिर्फ सोच कर टाइप करने वाली तकनीक को मार्केट में ला चुके थे। और इसके 2 वर्षो के भीतर ही इसी तकनीक को और परिष्कृत करके किसी देश के कुछ अतिउत्साही देशी इंजीनयरों द्वारा ऐसी तकनीक ईजाद की गई जिससे बिना व्यक्ति को छुए 100 मीटर दूर से ही उसके Brain Signals को detect करके वो क्या सोच रहा है ये पता लगाया जा सकता था। सरकार को ये तकनीक पसंद आ गई और इसे बड़े स्तर पर लागू करने की योजना बनाई गई। इसके अंतर्गत नैनो तकनीक का प्रयोग कर सभी नागरिकों के शरीर मे ऐसी सूक्ष्म डिवाइस इंजेक्ट की गई जो उनके आधार संख्या को ब्रॉडकास्ट करती रहती थी। एक Pre-Crime Department की स्थापना की गई जिसका कार्य था लोगों के सोचने के पैटर्न और उनके विचारों को monitor करना और देश विरोधी विचारों को उनके कार्यान्वयन के पहले ही रोकना और गिरफ्तार करके मुकदमा चलाना। इस योजना के लागू होने के तात्कालिक फायदे बहुत मिले यथा अपराधों में कमी, आतंकवाद और उग्रवाद का समापन इत्यादि लेकिन कुछ ही समय बाद देश मे दम घोटू माहौल बनने लगा।लड़को का तो बहुत बुरा हाल था क्योंकि अपने Action को तो वो एक पल को नियंत्रित कर भी ले, लेकिन मन के विचारों का क्या करें। हद तो तब हो गई जब चंगू पांडे जैसे सीधे मानुष जो दिन भर घर का बर्तन मांजने और सब्जी काटने का काम किंया करते थे, को दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के आरोप में अंदर कर दिया गया क्योंकि एक बार पत्नी की गलियों से तंग आकर मन मे वो उन्हें पीटने का ख्याल जो ले आए। इसी बीच ऊपर से निर्देश आये की सरकार विरोधी विचारधारा को भी इस डिपार्टमेंट के अंतर्गत लाया जाए। बस फिर क्या था अब फेसबूक पर सरकार विरोधी पोस्ट लाइक करने पर भी लोग जेल में जाने लग गए। जेल के बाहर और अंदर रहने वाले नागरिकों का अनुपात इतना बिगड़ गया कि 10 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले एक नए राज्य "कारागार प्रदेश" की स्थापना करनी पड़ गई। ये देख कर जनता ने चुनावों के द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने का निश्चय किया। लेकिन भइया सरकार तो अब सबके मन की बात जानती थी। सो सशस्त्र आंतरिक विद्रोह के आधार पर देश मे आपातकाल लगा दिया गया।
आज एक दशक बीत चुका है इस बात को और कारागार प्रदेश का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 99% हो चुका है। कहते है कि जेल का स्वरूप बड़ा आधुनिक है। लोग इन जेलों में काम करते हैं, फसल पैदा करते हैं, खरीदते बेचते हैं बस अपने मन का सोच नही सकते।
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नीलेश मिश्रा
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