This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 66 : 2018
"अगला स्टेशन है राजीव चौक। Blue Line और Yellow Line के लिए यहाँ से बदलें। दरवाजे दाईं तरफ़ खुलेंगे।
The next station is Rajeev Chowk. Change here for Blue line & Yellow Line. The doors will be opened on the right"
ये वाक्य एक संगीत की तरह दिमाग में गूंजता रहता था और इसे सुनते ही दिमाग Office Mood में आ जाता था। मेट्रो स्टेशन के पास पहुंच के चाय और बन्द मक्खन और फिर बस स्टैंड के बगल में बैठ कर अंग्रेजी में भीख मांगने वाले भिखारी को 10 की नोट पकड़ाना मेरी रूटीन बन चुका था।
जी हाँ सही पकड़े आप, वो भिखारी हाथ पैर आंख नाक से तो सही ही लगता था, गबरू जवान भी था, लेकिन मैला कुचला कपड़ा पहन के अंग्रेजी में भीख मांगा करता था "I am in destitution. Please donate me money" । इसी कारण से वो मेरे और मेरे जैसे कइयों का लिए काफी कौतूहल का विषय भी था । लेकिन उसका गन्दा look और पास आने पर शरीर से आती अजीब सी गन्ध की वजह से मन ही नही करता था उससे बात करने का। वैसे भी दिल्ली बड़ा कातिल शहर है- न दिल है किसी के पास और न समय। शायद मानसिक रोगी रहा होगा। अब कौन सा वो डोनाल्ड ट्रम्प का भतीजा था जो उसके बारे में जानने को कोई जहमत उठाएगा । बहरहाल 2 साल तक तो ऐसा ही चलता रहा और कम्पनी में मेरा प्रोमोशन भी हो गया। लेकिन एक दिन अचानक वो भिखारी मुझे नही दिखा। अगले दिन भी नही दिखा। हफ्ते भर नही दिखा। अब मेरा दिल धक धक करने लगा। एक अपराध बोध सा महसूस होने लगा कि उसे कही कुछ हो तो नही गया। भले से मै दिल्ली में रह रहा था लेकिन दिल से तो आज भी यूपी का था। मर वर तो नही गया, या कहीं कोई किडनी गिरोह इसे पकड़ के तो नही ले के चला गया। दिमाग बार बार Ignore मूड़ में जाने के लिए insist कर रहा था लेकिन फिर भी मन नही मान रहा था। "क्या मानवता के नाते मेरा कोई कर्तव्य नही है। क्या मैं खुद को माफ कर पाऊंगा इस अपराध बोध को दिल पे लिए की आज मैंने उस भिखारी के बारे में पड़ताल की होती तो शायद उसे किसी बड़ी मुसीबत से बचा ले जाता" इन सब विचारों ने मुझे झकझोर कर रख दिया और मैंने फैसला कर लिया कि मैं इस मामले में मदद के लिए पुलिस के पास जाऊंगा । लेकिन पहले आस पास पड़ताल कर ली जाए - ऐसा सोच कर मैं उस भिखारी के पड़ोसी भिखारियों और चाय वाले से पड़ताल करने लगा। भिखारियों को तो कुछ नही पता था अलबत्ता चाय वाले ने एक ई-रिक्शा वाले के बारे में जरूर सूचना दी जो उसको लाता ले जाता था। ये सुनते ही Crime Petrol के 2-3 एपिसोड मेरे दिमाग मे घूम गए। इसी बीच चाय वाले ने इशारे से बताया कि वो ई रिक्शा वाला सामने रिक्शा खड़ा करके चाय वाले के पास ही आ रहा था।
"भैया हिसाब कर लो । अब हम बाहर जा रहे"
ई रिक्शे वाले की ये बात सुनते ही मेरा खून खौल उठा। मैने उसका कॉलर पकड़ लिया और कड़क आवाज में पूछा "क्यों बे उस बेचारे भिखारी को ठिकाने लगा के भागने का प्लान बना रहा है साले"।
उसने तुरंत हाथ जोड़ के घबराई हुई आवाज में मुझे बताया
"अरे नही साहब, मैं और वो दोस्त हैं SSC की तैयारी कर रहे थे। 2013 में उसने फार्म भरा था, Tier-1, Tier -2, Tier -3, Writ, Stay, High Court , Supreme Court, Re-Exam, Tier-4 और इन सबके बाद Joining आते आते 2018 आ गया , जेब मे दमड़ी नही थी इसलिए हम दोनों दोस्त ये काम कर रहे थे। अब वो Custom Inspector join कर लिया है, और मेरा भी Income Tax Inspector का Joining Letter आ गया है तो मैं भी जा रहा हूँ बाबू जी।"
एक झटके में मैं और मेरी सोच दोनों भिखारी हो चुके थे ।
--
नीलेश मिश्रा
"अगला स्टेशन है राजीव चौक। Blue Line और Yellow Line के लिए यहाँ से बदलें। दरवाजे दाईं तरफ़ खुलेंगे।
The next station is Rajeev Chowk. Change here for Blue line & Yellow Line. The doors will be opened on the right"
ये वाक्य एक संगीत की तरह दिमाग में गूंजता रहता था और इसे सुनते ही दिमाग Office Mood में आ जाता था। मेट्रो स्टेशन के पास पहुंच के चाय और बन्द मक्खन और फिर बस स्टैंड के बगल में बैठ कर अंग्रेजी में भीख मांगने वाले भिखारी को 10 की नोट पकड़ाना मेरी रूटीन बन चुका था।
जी हाँ सही पकड़े आप, वो भिखारी हाथ पैर आंख नाक से तो सही ही लगता था, गबरू जवान भी था, लेकिन मैला कुचला कपड़ा पहन के अंग्रेजी में भीख मांगा करता था "I am in destitution. Please donate me money" । इसी कारण से वो मेरे और मेरे जैसे कइयों का लिए काफी कौतूहल का विषय भी था । लेकिन उसका गन्दा look और पास आने पर शरीर से आती अजीब सी गन्ध की वजह से मन ही नही करता था उससे बात करने का। वैसे भी दिल्ली बड़ा कातिल शहर है- न दिल है किसी के पास और न समय। शायद मानसिक रोगी रहा होगा। अब कौन सा वो डोनाल्ड ट्रम्प का भतीजा था जो उसके बारे में जानने को कोई जहमत उठाएगा । बहरहाल 2 साल तक तो ऐसा ही चलता रहा और कम्पनी में मेरा प्रोमोशन भी हो गया। लेकिन एक दिन अचानक वो भिखारी मुझे नही दिखा। अगले दिन भी नही दिखा। हफ्ते भर नही दिखा। अब मेरा दिल धक धक करने लगा। एक अपराध बोध सा महसूस होने लगा कि उसे कही कुछ हो तो नही गया। भले से मै दिल्ली में रह रहा था लेकिन दिल से तो आज भी यूपी का था। मर वर तो नही गया, या कहीं कोई किडनी गिरोह इसे पकड़ के तो नही ले के चला गया। दिमाग बार बार Ignore मूड़ में जाने के लिए insist कर रहा था लेकिन फिर भी मन नही मान रहा था। "क्या मानवता के नाते मेरा कोई कर्तव्य नही है। क्या मैं खुद को माफ कर पाऊंगा इस अपराध बोध को दिल पे लिए की आज मैंने उस भिखारी के बारे में पड़ताल की होती तो शायद उसे किसी बड़ी मुसीबत से बचा ले जाता" इन सब विचारों ने मुझे झकझोर कर रख दिया और मैंने फैसला कर लिया कि मैं इस मामले में मदद के लिए पुलिस के पास जाऊंगा । लेकिन पहले आस पास पड़ताल कर ली जाए - ऐसा सोच कर मैं उस भिखारी के पड़ोसी भिखारियों और चाय वाले से पड़ताल करने लगा। भिखारियों को तो कुछ नही पता था अलबत्ता चाय वाले ने एक ई-रिक्शा वाले के बारे में जरूर सूचना दी जो उसको लाता ले जाता था। ये सुनते ही Crime Petrol के 2-3 एपिसोड मेरे दिमाग मे घूम गए। इसी बीच चाय वाले ने इशारे से बताया कि वो ई रिक्शा वाला सामने रिक्शा खड़ा करके चाय वाले के पास ही आ रहा था।
"भैया हिसाब कर लो । अब हम बाहर जा रहे"
ई रिक्शे वाले की ये बात सुनते ही मेरा खून खौल उठा। मैने उसका कॉलर पकड़ लिया और कड़क आवाज में पूछा "क्यों बे उस बेचारे भिखारी को ठिकाने लगा के भागने का प्लान बना रहा है साले"।
उसने तुरंत हाथ जोड़ के घबराई हुई आवाज में मुझे बताया
"अरे नही साहब, मैं और वो दोस्त हैं SSC की तैयारी कर रहे थे। 2013 में उसने फार्म भरा था, Tier-1, Tier -2, Tier -3, Writ, Stay, High Court , Supreme Court, Re-Exam, Tier-4 और इन सबके बाद Joining आते आते 2018 आ गया , जेब मे दमड़ी नही थी इसलिए हम दोनों दोस्त ये काम कर रहे थे। अब वो Custom Inspector join कर लिया है, और मेरा भी Income Tax Inspector का Joining Letter आ गया है तो मैं भी जा रहा हूँ बाबू जी।"
एक झटके में मैं और मेरी सोच दोनों भिखारी हो चुके थे ।
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नीलेश मिश्रा
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