Section-377 I.P.C - अप्राकृतिक अपराध
ये अपराध आज से 158 साल पहले का है जो अंग्रेजो के समय 1860 के समय बना था जिसे 158 साल तक अपराध माना गया जिसके दोषी पाए जाने पर 10 वर्ष / अजीवन कारावास की सजा दी जाती थी ।
समलैंगिकता( Homosexual) : ये शब्द आम भाषा मे इस्तेमाल किया जाता है जिसका अर्थ है:- किसी भी same sex से attraction वो चाहे physical, emotional, psychological हो जो आप यदि normally किसी से नही रखते है
LGBT:-
L-Lesbian,
G-Gay,
B-Bisexual
T-Transgender
ये एक community है जो इन लोगो को सम्बोधित करती है । इनके बीच यदि voluntarily carnel intercourse हों तो वो अब तक अपराध की श्रेणी में आती थी
* मुद्दा क्यों ज्वलंत है?
समलैंगिकता को अपराध कि श्रेणी से हटाया जाना चाहिए या नहीं - इस मुद्दे की शुरुवात काफी पहले हो गई थी ।
* पहली बार ये नाज़ फाउंडेशन vs Govt of NCT Delhi 2009 के द्वारा limelight में आया जिसमे समलैंगिकता को Equality के आधार पे अपराध नही माना गया ।
* दूसरी बार ये सुरेश कौशल vs नाज़ फाउंडेशन trust 2013 के द्वारा प्रकाश मे आया जिसमे इस क़ानून को असवैंधानिक मानते हुए अपराध माना गया ।
इसे असंवैधानिक क्यों माना गया ?
तर्क में -
* Article-14 को violate करता है क्योंकि Article-14 Right to Equality जहा कानून की नजर में सभी समान है
* Article-15(1) को violate करता है जहाँ धर्म ,जन्मस्थान,जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव करता है उन्हें बच्चे अडॉप्ट नही करने दिया जाता जबकि गे कपल को भी I V F technology द्वारा बच्चे हो सकते है।
* Article-21 को violate करता है जहाँ Right to Life, Personal liberty के आधार पर भेदभाव करता है
06.08.2018 को Supreme Court क़े 5 Judges की बेंच से ये Judgement दिया जिसमें समलैंगिकता को अब अपराध नहीं माना जायेगा।
Guidelines
1. Voluntarily दो adult अपनी पसंद से सम्मान से जी सकेंगे यदि एकांत में दो adults समलैंगिक संबंध रखते ह तो वो अपराध नही होगा ।
2. लेकिन बिना सहमिति के या Minor (18 से कम उम्र ) से इस तरह के सबंध अपराध होंगे ।
3.पशुओं के साथ सम्बन्ध अपराध माने जाएंगे ।
अब सवाल ये है
1.कि क्या ये फैसला लेने में सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल की देर नही कर दी??? जबकि कई देशो में इसे कबका अपराध की श्रेणी से दूर कर दिया गया
2. क्या एक झटके में लिया गया फैसला सबके लिए समान दृष्टि से सही साबित हो सकेगा?
* पक्ष में तर्क:-
-जहा एक तरफ समलैंगिको को अब आज़ादी मिल जाएगी जैसे चाहे जिये उनको भी अब समानता मिलेगी
-उनको भी अपनी पसंद से रहने का अधिकार मिल जाएगा
-क्योंकि ये अधिकार उन्हें भारत के नागरिक होने के नाते हमरा मूल अधिकार और मनुष्य होने के नाते मानव अधिकार भी है
*विपक्ष में तर्क :-
-क्या ये एक झटके में लिया फैसला समाज के नजरिये को इतनी जल्दी बदल सकेगा ।
-क्या 200 लोगो की समस्या को राष्ट्रीय समस्या माना जा सकता है?
-भविष्य में इनके बहुत से अधिकारो की मांग उठेगी विवाह,तलाक, उत्तराधिकार, बच्चो के बारे में
- AIDS और बच्चों के प्रति यौन अपराध के बढ़ने का खतरा भी बढेगा
आखिर इन गंभीर समस्याओं का भी हल निकला जाना चाहिए ..या फिर इन समस्यओं के हल की खोज अगले 158 बाद साल हो पाएगी...हमारे समाज को भी वक़्त के साथ बदलाव को अपनाना चाहिए क्योंकि समय के साथ क़ानून में बदलाव आवश्यक है और हम एक सभ्य ,धर्म निरपेक्ष,आजाद भारत के निवासी है law तबतक नही सुचारू रूप से चल सकता जबदक समाज उसे अपनाता नही हमें माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आदर करना चाहिए ...समलैंगिको को हीन दृष्टि से न देखना चाहिए वे भी आजाद भारत के नागरिक है हमारी ही तरह ... हमें समानता तो उन्हें हीनता क्यों?
Article by Advocate Suparna Mishra
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