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Original Stories By Author (71): गुमशुदा की तलाश

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

कहानी 71: गुमशुदा की तलाश

"बेटा, Why are you inclined for going India उस पे भी यूपी।"

"Dad I'm a grown up girl and it's a professional visit , My company has assigned me this project and it's very crucial for my career. I can't compromise. And what's wrong with you dad! I have visited so many countries in past too. What's the big deal this time and India is a friendly country dad. Don't worry I will take care of myself."

"ठीक है बेटा जा। But be careful it's not like other countries you have gone through."
फ्लाइट में बैठे शर्मा जी के दिमाग मे बार बार यही संवाद गूंज रहा था जो अंतिम बार ब्रिटेन छोड़ने से पहले उनके और उनकी बेटी के बीच मे हुआ था। 1 महीने से ऊपर बीत चुके थे और बेटी से कोई सम्पर्क न हो पाने के कारण शर्मा जी ने स्वयं उस देश जाने की ठानी जिसके वे 20 वर्ष पूर्व नागरिक हुआ करते थे। फ्लाइट लैंड करने के साथ ही उनका खोज अभियान शुरू हो चुका था। एम्बेसी और कम्पनी के भारतीय हेडक्वार्टर के चक्कर काटने के बाद भी नतीजा सिफर ही था। थाने में देशी लोगों की FIR दर्ज कराने में तो छींके आ जाती हैं लेकिन विदेशी नागरिक होने का लाभ शर्मा जी को मिला जब थानेदार ने उनके आने पर चाय मंगवा के पिलाई। इधर थाने का मंजर रूह कंपा देने वाला था। कहीं वादी रो बिलख कर अपनी फरियाद सुना रहे थे तो नेपथ्य में किसी के पिटने की चीत्कार सुनाई दे रही थी। 
"देखिए शर्मा जी, पुलिस अपना काम कर रही है, सारे थानो में detail circulate कर दी गई है, सॉशल मीडिया प्रोफाइल छानी जा रही है। कुछ भी जानकारी मिलती है तो बताई जाएगी।" - थानेदार साहब ने चाय की चुस्कियां लेते हुए अपनी बात खत्म की।
"Sir One month has been passed and not even a single clue! " - शर्मा जी ने कर्तव्यपरायणता याद दिलाते हुए अपनी बात रखी
"अब आप हमें न बताइए कि हमे क्या करना चाहिए।  देखिए शर्मा जी विदेश मंत्रालय से हमे निर्देश मिले हैं इसलिए यहां बैठ के शांतिपूर्वक आपकी बात सुन ले रहा हूँ वरना किसी और कि हिम्मत भी नही पड़ती की मेरे सामने मुँह भी खोल सके। By the way विदेशी लोग तो काफी खुले विचारों के होते हैं ऐसा तो नही की आपसे पीछा छुड़ा के किसी और के पीछे पड़ गई हो"
"तमीज से बात करिए थानेदार साहब" - शर्मा जी एकदम आगबबूला हो चुके थे। 
"चिल्लाईय मत। यहां रोज सैकड़ो केस आते हैं । कहाँ कहाँ तक किसको solve करू। अब आप क्या चाहते है पूरी फोर्स लगा दु खाली आपके काम में हूह" 
शर्मा जी क्रोधित होकर थाने से बाहर निकल चुके थे और बड़े अधिकारी से शिकायत करने का मन बना के जाने लगे थे कि तभी किसी ने आवाज दी 
"बाबू जी एक मिनट" - ये वही गाइड था जो शर्मा जी के साथ सुबह से था। 
"आप कही भी चले जाइये, किसी से भी शिकायत कर लीजिए, यहां इन सब से कोई फायदा नही है- यहां सब सेटिंग से चलता है"
"तो बताओ मैं क्या करूँ"
इसके बाद वो गाइड देशी तौर तरीकों से शर्मा जी की मदद करने लगा । हर सम्बंधित विभाग, थाना, वकील इत्यादि को समुचित माध्यम से चढ़ावा चढ़ाया गया। हर अस्पताल, मानसिक रोग चिकित्सालय, जेल, यहां तक कि वैश्यालय तक मे खोज की गई। इस बीच देशी समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों में धारा 376, ह्यूमन ट्रैफिकिंग इत्यादि की खबरे पढ़ सुनकर शर्मा जी की हिम्मत जवाब देने लग गई थी। औऱ वो रोने लगते।
"साहब यहां ऐसा ही है, हर साल हजारों लोग एकदम से लापता हो जाते हैं न जाने कौन सी दुनिया मे की कभी पता ही नही चलता। लेकिन धैर्य रखो साहब हम आपका बेटी ढूंढने के लिए जमीन आसमान एक कर देगा।" - शायद गाइड को शर्मा जी से काफी जुड़ाव हो गया था। 
बहरहाल 3 महीने की जद्दोजहद के बाद शर्मा जी की बेटी एक हॉस्पिटल में मिल गईं। जहां सिर पर चोट लगने के कारण उनका इलाज चल रहा था। पिता पुत्री एक दूसरे को देख के फुट फुट के रोने लगे। बाद में ज्ञात हुआ कि फ्लाइट से उतरने के बाद कम्पनी हेड क्वार्टर में रिपोर्टिंग करने के लिए जाते समय कैब अनियंत्रित होकर नदी में गिर पड़ी थी और सिर पर चोट लगने के कारण मैडम कुछ समय तक कुछ भी याद कर पाने में असमर्थ थी। 
कहानी का अंत सुखद रहा लेकिन कैब ड्राइवर का क्या हुआ, ये जानने की जहमत किसी ने नही उठाई।

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नीलेश मिश्रा





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