दिवाली पर बॉलीवुड ने 'ठग्स ऑफ
हिन्दोस्तान' को लेकर भारी उम्मीदें बांधी थी और उम्मीद क्यों न हो? पहली
बार आमिर और अमिताभ का साथ, यश राज का बैनर, दिवाली का त्योहार, लेकिन
'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान' ने सारी उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया। पहले दिन
रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन करने के बाद दूसरे दिन ही दर्शकों ने फिल्म को
रिजेक्ट कर दिया। आइए जानते हैं उन पांच कारणों को जिनकी वजह से फिल्म असफल
रही:
1) कमजोर कहानी, बेतुकी स्क्रिप्ट
फिल्म की कहानी सत्तर और अस्सी के दशक में बनने वाली फिल्मों की कहानी की
तरह है, या कहना चाहिए उससे भी कमजोर। प्रचार तो इस तरह किया गया मानो
अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई को लेकर कुछ ताना-बाना बुना गया हो, लेकिन यह
तो 'बाप का बदला' लेने वाली कहानी निकली। इसमें न रोमांस था, न
राष्ट्रभक्ति की भावनाएं। न दमदार एक्शन की गुंजाइश थी और न इमोशनल सीन थे
जो दर्शकों को भावुक कर दें। एक बेसिर-पैर कहानी पर करोड़ों रुपये कैसे
खर्च कर दिए गए, यह शोध का विषय है।
जितनी कमजोर कहानी है उतनी ही कमजोर स्क्रिप्ट है। लॉजिक की कोई गुंजाइश
नहीं। क्रांति से लेकर तो पायरेट्स ऑफ कैरेबियन तक के मसाले जुटाए गए हैं,
लेकिन नकल में भी अकल नहीं लगाई गई। दिमाग घर पर भी रख आओ तो भी यह फिल्म
मनोरंजन नहीं करती। फिल्म देखते समय कई 'अगर-मगर' दिमाग में पैदा होते रहते
हैं। जो मन में आया वो लिख दिया, ये सोच कर की भव्यता की आड़ में सब दब
जाएगा। स्क्रिप्ट इतनी बेतुकी है कि दर्शक फिल्म से जुड़ ही नहीं पाते।
2) कैटरीना के नाम पर ठगा गया
फिल्म के पोस्टर्स, टीज़र, ट्रेलर में कैटरीना कैफ को
इस तरह दिखाया गया मानो वे फिल्म की हीरोइन हों, लेकिन फिल्म देखने के बाद
दर्शक ठगा महसूस करता है। दो गानों और तीन दृश्यों में वे नजर आईं और उनका
फिल्म में सिर्फ छोटा-सा ही रोल था। सवाल तो कैटरीना से बनता है कि
उन्होंने फिल्म आखिर की ही क्यों? वो भी करियर के इस स्टेज पर? आखिर ऐसी
क्या जरूरत आन पड़ी? क्या वे यशराज फिल्म्स और आमिर खान को
ना कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं? यशराज फिल्म्स ने भी दर्शकों को गुमराह
क्यों किया? कैटरीना का रोल छोटा था तो इस तरह का प्रचार ही नहीं करना था।
3) अधपके किरदार
फिल्म के सारे मुख्य किरदार ठीक से नहीं लिखे गए हैं। वे अधपके नजर आते
हैं। अमिताभ बच्चन के किरदार के साथ न्याय नहीं किया गया। शुरुआत में जोश
दिखाता है, लेकिन बाद में ठंडा पड़ जाता है। अमिताभ बच्चन को तो शुरुआत के
घंटे में बोलने ही नहीं दिया गया है। जिसकी संवाद अदायगी और आवाज के दर्शक
दीवाने हैं वो भला कैसे यह बात बर्दाश्त करते। इस तरह के ड्रामे में तो
अमिताभ को जोरदार संवाद मिलना थे। फातिमा सना शेख पर जरूरत से ज्यादा भार
डाल दिया गया। अमिताभ, आमिर, कैटरीना के होते हुए उन्हें ज्यादा फुटेज दिए
जाएंगे तो दर्शक ठगा हुआ ही महसूस करेंगे। ऊपर से उनकी खराब एक्टिंग ने सब
कुछ कबाड़ा कर दिया। कैटरीना की चर्चा ऊपर की ही जा चुकी है। इस तरह के
आधे-अधूरे किरदार के सहारे कैसे फिल्म बनाई जा सकती है।
4) कप्तान के कारण डूबा जहाज
सबसे कमजोर कड़ी साबित हुए विजय कृष्ण आचार्य, जिन्होंने फिल्म को लिखा भी
है और निर्देशन भी किया। इतने बड़े अवसर को उन्होंने जिस तरह से बरबाद
किया है उसके बाद उन्हें बॉलीवुड में फिर अवसर मिलना मुश्किल है। क्या नहीं
था उनके पास? करोड़ों का बजट, एक दिलदार निर्माता, प्रतिष्ठित बैनर,
शानदार कलाकार, दिवाली पर फिल्म रिलीज करने का मौका, लेकिन वे फायदा ही
नहीं उठा पाए। बचकानी लिखी कहानी पर खुद ने ही फिल्म निर्देशित कर दी। ऊपर
से निर्देशन ऐसा जैसे बिना ड्रायवर के गाड़ी चल रही हो। हिचकोले लेते हुए
इधर-उधर चलती रहती है। विजय की इस फिल्म से किसी भी तरह के दर्शक का
मनोरंजन नहीं हो पाता। वे कैप्टन ऑफ द शिप थे और उन्होंने ही इसे डूबोया।
5) निर्माता भी कम दोषी नहीं
उंगलियां तो आदित्य चोपड़ा पर भी उठाई जा सकती हैं। उन्होंने इस फिल्म पर
पैसा लगाया है। आदित्य की गिनती बॉलीवुड के उन निर्माताओं में होती है जो
सोच-समझ कर फिल्म बनाते हैं, लेकिन 'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान' ऐसा दाग है जिसे
धो पाना आदित्य के लिए आसान नहीं रहेगा। आखिर क्या सोच कर उन्होंने करोड़ों
रुपये इस फिल्म पर फूंक डाले। कुछ भी तो इसमें देखने लायक नहीं है।
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