This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 72: रोटी
बात
90 के दशक की है। ठेंगामल अपने लौंडे से बहुत परेशान थे। पढ़ने में उसका
जरा भी मन नही लगता था। खैर जिला पूर्ति अधिकारी उनके जानने वाले निकल आए
थे इसलिए दान दक्षिणा दे के राशन की दुकान अपने लड़के के नाम करवा ली। लड़का
शुरू में तो सही काम किया लेकिन बाद में उसको अपनी शक्तियों का अहसास हुआ।
उसे धीरे धीरे समझ आने लगा कि राशन गरीबों को दो न दो रजिस्टर में जरूर
देना दिखना चाहिए। कोई ज्यादा तीन पांच करे तो 1 किलो राशन देके 10 किलो के
आगे sign करा लो। कोई मिट्टी का तेल मांगे तो बता दो गैस ज्यादा सस्ती
पड़ेगी। और "गेहूं चावल चीनी तो वैसे भी आपूर्ति केंद्र से कभी पूरा नही
भेजा जाता, बाबू लोग सब खा जाते हैं" वाला रामबाण बहाना तो है ही। बाकी रसद
विभाग में मासिक चढ़ावा तो पहुंच ही रहा था, सो किसी बात का कोई डर नही था।
देखते ही देखते लड़के ने गाँव जवार में सबसे बड़ी कोठी बनवा ली। शहर में भी
मकान ले लिया। अपने बच्चो को शहर में ही शिफ्ट कर दिया। यहां तक कि वो
दुकान भी अपने नाम करवा ली जिसे उसे किराए पर आवंटित किया गया था। जब पता
चला कि BPL (ग़रीबी रेखा के नीचे) कार्ड धारकों को सरकार ज्यादा सुविधाएं
देती है तो लड़के जुगाड़ नामक ब्रह्मास्त्र से वो भी बनवा लिया। कालांतर में
आधार कार्ड से लिंक, खाते में पैसा जाना, अंगूठा लगा के authenticate करना ,
आय प्रमाण पत्रों का ऑनलाइन वेरिफिकेशन इत्यादि घमंजरो के चक्कर मे लड़के
का पूरा धंधा चौपट हो गया। इसी दौरान अत्यधिक भ्र्ष्टाचार की शिकायतों का
संज्ञान लेकर सरकार ने सरकारी राशन की सब्सिडी डायरेक्ट खाताधारकों के
खातों में ट्रांसफर करने की योजना लागू कर दी और समस्त राशन की दुकानों को
बंद करने का निर्णय ले लिया।
कल लोग बता रहे थे कि
लड़का चारो ओर घूम घूम के सरकार से रोजी रोटी छीन लेने का आरोप लगा रहा है
और एक आदमी को किराए पर रख के उससे अनशन करवा रहा है । वहीं गांव वालो मे
उत्साह का माहौल है। बुढ़िया दादी कह भी रही थी "चलो जीते जी रोटी हाथ मे न
आई न सही, अब खाते में तो आएगी"
--
नीलेश मिश्रा
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