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Original Stories By Author (77): कैद

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra


कहानी 77: कैद 

भानु के पिता जी आज बेहद खुश थे। होते भी क्यों न, बिना एक पैसे खर्च किए अपने दम पर लड़का पुलिस में सिपाही जो बन गया था। पूरे गांव में घूम घूम के मिठाई बांट रहे थे। जोइनिंग हुई, ट्रेनिंग पूरी हो गई। पोस्टिंग ऑर्डर मुज़्ज़फ्फनगर के किसी थाने के थे। वहां पहुंच कर भानु ड्यूटी बाबू के पास पहुंचा औऱ सैल्यूट किया। बधाई और परिचय की औपचारिक प्रक्रिया के बाद ड्यूटी बाबू ने किसी को फ़ोन मिलाया और संक्षिप्त वार्त्तालाप के बाद "यस सर्, सर सर, जय हिंद सर" कह कर फोन काट दिया। 
"भानु तुम्हारे लिए अच्छी खबर है, तुम्हारी पोस्टिंग इसी थाने में हुई है लेकिन तुम्हारी ड्यूटी बड़े साहब के बँगले पर रहेगी, तुम्हारी हाजिरी यहीं बनेगी इसलिए जब भी फुरसत पाना दिन में, तो यहीं आकर हाजिरी बना देना।"
भानु ने सहमति में सिर हिलाते हुए "जी सर" कहा।
"अरे तुम्हे तो पार्टी देनी चाहिए पूरे थाने को, बढ़िया AC में रहोगे, किसी चीज का कोई डर नही रहेगा, न पब्लिक की मचमच न नेता मंत्री की सरदर्दी, अबे लोग पैसे देके ऐसी ड्यूटी पाते है, तुम्हे तो फ्री में मिल रही है" - ड्यूटी बाबू ने मनोबल बढाते हुए कहा।
ये सुनकर भानु की आंखों में चमक आ गई। 
ड्यूटी के लिए साहब के बंगले पर पहुंच गया। एकदम आलीशान बंगला था। मार्बल, एशियन पेंट्स से सजा बड़े साहब का बंगला सर्विस के दौरान कमाई गई अपार यश-कीर्ति को बयान कर रहा था। ड्यूटी जॉइन हो गई। पता चला कि वहां भानु जैसे 5-6 अन्य विभागीय कर्मचारी भी थे जिनमें से कोई बड़े साहब के कुत्ते की जिम्मेदारी संभाल रहा था, कोई माली, कोई कूक का काम देख रहा था। भानु को बड़े साहब की बेगम और साहबजादे को लाने ले जाने और अन्य सेवा का उत्तरदायित्व मिला। शुरू के कुछ दिन तो सही गुजरे लेकिन बाद में धीरे धीरे उसे अपने सरकारी नौकर होने का कम और बड़े साहब के गुलाम होने का ज्यादा आभास होने लगा। 
"अबे यार हम लोग इन सब काम को करने के लिए भर्ती हुए थे ?" भानु ने अन्य साथियों के साथ होने वाली रोजाना चर्चा में दिल की बात छेड़ दी।
"अबे धीरे बोल, लास्ट टाइम इस तरह के क्रांतिकारी विचार मेरे अंदर भी आये थे तो मेरी ड्यूटी मुज़्ज़फ्फरनगर दंगे सम्भालने में लगा दी गई थी। भाई कैसे कैसे जुगाड़ करके यहाँ फिर से लगवा के अपनी जान और सर्विस दोनों बचाई" - एक ने कहा।
और बाकियों ने भी इसी तरह की दलीलें पेश की।
भानु- "यार लेकिन ये हमसे नौकरों वाले काम करवाते हैं"
"अबे तो घर पर लगे हैं तो और कौन सा काम करवाएंगे।" किसी दूसरे ने रिप्लाई किया।
"वैसे भी हम पांचों की सैलरी मिला के एक लाख के ऊपर बनती है , इतना वेतन दे के प्राइवेट नौकर तो कोई रखेगा नही"
इस तरह से दिन बीतने लगे। भानु को कई बार मैडम और उनके बेटे से अपमान सहन करना पड़ता। जब भी वो घर जाने की छुट्टी मांगता उसे "अरे नही नही कल तो हमारे फलाने मेहमान आ रहे हैं", " कल सोनू का इम्तेहान है, कौन लाएगा ले जाएगा उसे" इत्यादि नाना प्रकार के कारणों का हवाला दे के उसे रोक लिया जाता था। एक बार बाबू जी की तबियत ज्यादा खराब हो जाने की वजह से भानु को बिना परमीशन लिए अपने घर जाना पड़ गया, इलाज करवा कर 3 दिन बाद जब ड्यूटी वॉपस पहुचा तो पता चला बड़े साहब ने उसे सस्पेंड कर दिया था। बड़े साहब के पास उनके बंगले  दौड़ा दौड़ा पहुंचा। कारण बताने पर भी अनेको अपशब्द सुनने पड़े। एक पल तो उसके मन मे आया कि ऐसी जिल्लत की नौकरी से इस्तीफा ही दे दे लेकिन फिर बाबू जी और घर की हालत दिमाग के सामने घूम गई। मन मार के फिर से ड्यूटी देने लगा। मैडम और उनके बेटे की खडूस बातें और उनके द्वारा बताए जाने वाले अपमानजनक कार्य और बढ़ गए थे। 
एक दिन गाड़ी पंचर बनवाने की वजह से मैडम साहब औऱ बेटे को pick up करने में देर ज्यादा हो गई तो तीनों भानु पर बरस उठे।
"इडियट, बास्टर्ड, साले तुमहारे जैसे झूठे मक्कारो को ये सरकार नौकरी पर रख कैसे लेती है। सारा प्लान delay कर दिया " 
"सर एंड मैडम, ये नौकरी खैरात में नही मिली है"- आज भानु का सब्र जवाब दे चुका था, उसकी आंखे क्रोध से लाल हो गई थी।
"साले अपने सीनियर ऑफीसर से जुबान लड़ाता है," और ये कह कर बड़े साहब ने अपनी बेल्ट निकाल ली भानु को मारने के लिये।
भानु का दिमाग क्रोध से शून्य हो चुका था। अचानक 6 गोलियों की आवाज पूरे वातावरण में गूंज उठीं। बाकी सिपाही बाहर आए तो देखा कि भानु पिस्तौल कार की तरफ ताने खड़ा है और साहब बेगम और साहबजादे तीनों मृत पड़े हैं। भानु के चेहरे पर असीम शांति थी। उसे पता था कि अब वो जेल जाएगा और ताउम्र कैद में रहेगा।
लेकिन इस एक छोटे पल में वो हर तरह की कैद से आजाद था। 

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नीलेश मिश्रा






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