This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 78: An IAS Vs. Union of India
भाग -2 (Ending)
(गतांक से आगे)
सरकारी अधिवक्ता- "कहना क्या चाहते हो"
सर्वज्ञ
सिंह- "माय लार्ड मेरा केस ओलंपिक डोपिंग केस से अलग है, मैने एग्जाम के
पहले या दौरान कोई Performance Enhancing ड्रग नही लिया जिससे मुझे कोई
undue advantage मिलता। मेरा चयन, मेरी कार्यकुशलता और ज्ञान मेरे
अंतर्निहित शारीरिक और मानसिक विशिष्टताओं के कारण हैं और ये कोई
Malpractice या जुर्म नही है। मेरे दिमाग का ग्रे मैटर आम दिमागों से 30
गुना ज्यादा dense है, मेरे दिमाग के hippocampus और cartex बाकियों से
ज्यादा बड़े और उन्नत हैं तो इसमें मेरा क्या कसूर है। ये विद्वान वकील साहब
जो कानून पढ़ के 3 साल में वकालत की डिग्री हासिल किए हैं वो मैं 1 महीने
में पढ़ के जान गया तो इसमें मेरा क्या कसूर माय लार्ड। हां हूँ मैं सुपर
इंटेलीजेंट, और इसी वजह से UPSC में टॉप किया हूँ , और ये किसी भी कानून का
उल्लंघन नहीं है।"
सरकारी अधिवक्ता- "माय लार्ड, इन
जनाब की विशिष्ट प्रतिभा इन्होंने अपने मेहनत से नही अर्जित की है। बल्कि
इनके धनाढ्य पिता ने सरकार से बिना अनुमति लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग और
CRISPR तकनीक का प्रयोग करके गैर कानूनी ढंग से उपरोक्त विशिष्टताओ से
युक्त Gene Edited Baby का सृजन करवाया है और नतीजा आपके समक्ष है। आप ही
बताइए माय लार्ड, इस देश के बहुसंख्यक युवा जो गरीब या मध्यम वर्गीय
परिवारों से हैं , इस तरह होने से तो प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग ही नही कर
पाएंगे जो कि समानता के अधिकार का उल्लंघन है माय लार्ड।"
सर्वज्ञ
सिंह- "माय लार्ड, सक्षम और धनाढ्य लोग तो काफी पहले से ही कोचिंग,
personal tutor, Management Qouta इत्यादि नाना प्रकार के साधनों से अपने
बच्चों को आगे बढ़ाते ही रहे हैं। क्या ये पक्षपात पूर्ण प्रतियोगी माहौल का
सृजन नही करता या ये समानता के अधिकार से परे है। मेरे काबिल सरकारी
अधिवक्ता महोदय स्वयं सक्षम परिवार से हैं और उसी जुगाड़ का प्रयोग करके आज
ये यहाँ सरकार का पक्ष रखने की स्थिति में आ पाए हैं वरना बाहर इनसे कई
गुना प्रतिभाशाली Law Graduates दर दर भटक रहे हैं। और वैसे भी माय लार्ड
ऐसा कोई कानून देश मे नही है जो पिता की गलती की सजा उसके बच्चों को देने
का उपबंध करता है। रही बात तकनीक की, तो Survival of Fittest का सिद्धान्त
है - कमजोर हमेशा हाशिये पर रहेगा। तकनीक के इस्तेमाल को कानून से
नियंत्रित करना असंभव है। मैं 14 लोगो को मारने का आदेश दे कर हजारों लोगों
की जान बचाने का निर्णय सिर्फ इसी तकनीक की बदौलत दे पाया क्योंकि ये
कैलकुलेशन साधारण मनुष्य के वश की बात नही थी और ये प्रमाण है कानूनी
नियंत्रण पर तकनीक की सर्वोच्चता का।"
कोर्ट परिसर में सन्नाटा छा जाता है।
जज साहब अपने निजी सचिव से धीरे से- "ये तो पेचीदा मामला हो गया, क्या किया जाए?"
निजी सचिव धीरे से इशारे में - "वही"
जज
साहब हामी भरने के बाद- "मामला संविधान की व्याख्या से जुड़ा है और काफी
पेचीदा है और तमाम लोगो के जीवन को प्रभावित करने वाला है, अतः यह सम्पूर्ण
मामला बड़ी बेंच को Refer किया जाता है।
अब इसे बड़ी बेंच के सामने 5 साल बाद लिस्ट किया जाए।"
(और इसके बाद मंदिर केस की सुनवाई शुरू हो हो जाती है)
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