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Original Stories By Author (79): Good Evening

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra


कहानी 79: शुभ संध्या

जाड़े की शाम थी और इलाहाबाद शहर। शाम के 7 बज चुके थे। कार्यालय की कार्यावधि समाप्त हुए already एक घण्टा बीत चुका था। बैग टांगे भूस्वामी महोदय थके हुए कदमो से पार्किंग की ओर बढ़ रहे थे। अंधेरा अपना साम्राज्य फैला चुका था। ज्यादातर लोग जा चुके थे और पार्किंग में कुछ ही महान कर्मठी आत्माओं के वाहन शेष थे जो इलाहाबाद निवासियों के स्वभावानुरूप बेतरतीब ढंग से खड़े थे।
अपने वाहन के पास पहुंच कर भूस्वामी जी ने बाइक अनलॉक की, हेलमेट लगाया और बाइक पीछे करने लगे की तभी उनकी नजर कुछ दूरी पर अन्य गाड़ियों के बीच फँसी अपनी स्कूटी निकालने की जद्दोजहद करती एक युवती पर पड़ी।
 "अरे ये तो New Joinee है" - हैलोजन लाइट की नारंगी पीली लाइट में उसका चेहरा पहचान में आते ही भूस्वामी जी ने मन ही मन कहा। वैसे तो भूस्वामी जी कंप्यूटर इंजीनयर थे लेकिन किसी सुकुमार कन्या को देखते ही उनके अंदर का जय शंकर प्रसाद (महान कवि) बाहर आ जा जाता था। 30 की उम्र अचानक से 20 में बदल जाती थी। कार्यालय की थकान चेहरे की मुस्कान बन जाती थी। New Joinee का नाम, DOB, ब्लड ग्रुप सब उनकी जुबान पर रटा था लेकिन बस पिछले एक महीने से बातचीत शुरू करने के मौके की तलाश में थे। वैसे तो भूस्वामी जी नास्तिक थे लेकिन आज ईश्वर के अस्तित्व पर उनको पुनः यकीन हो चला था। बस फिर क्या था, बाइक साइड में की और पहुंच गए मोहतरमा के पास।
"Need help?"- 100 किलो जूल Energy एकत्रित करके भूस्वामी जी ने मदद की पेशकश की और मोहतरमा ने अपने चेहरे की भंगिमाओं, आंखों और अधरों का खूबसूरती से प्रयोग करते हुए बिना एक शब्द कहे अपनी सहमति प्रदान कर दी।
तो सबसे पहले भूस्वामी जी ने मौका ए वारदात का मुआयना किया। 5 अलग अलग दिशान्मुख गाड़ियां एक निरीह स्कूटी को इस तरह से घेर रखीं थी कि सभी गाडियो को एक विशेष क्रम में इधर उधर करके ही स्कूटी को उनके चंगुल से आजाद करवा कर मोहतरमा के दिल में खुद को कैद किया जा सकता था। बस फिर क्या था, भूस्वामी जी ने बैग खोला , लैपटॉप निकाला, मोतीलाल नेहरू नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, प्रयागराज स्थित सुपर कम्प्यूटर से कनेक्ट किया, मौका-ए-वारदात की Image upload करके Permutation Combination का प्रोग्राम चला दिया और 3 मिनट बाद Solution भी आ गया कि किस तरह से स्कूटी निकाली जा सकती है। भूस्वामी जी ने स्थिति को भाँप लिया और स्कूटी निकालने के लिए ततपर हुए ही थे कि मोहतरमा ने परेशान लहजे में कहा - "भैया अभी कितनी देर लगेगी"
भूस्वामी जी लैपटॉप बैग में डाला और कहा -"well मुझे लगता है मुझसे नही निकल पाएगी गाड़ी" और ये कहते हुए मतवाली चाल से अपनी बाइक की ओर चल दिए।

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नीलेश मिश्रा






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