This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 84: मुस्कानम विनाशम
अर्जुन
मालपानीवाला, प्रदीप बाटलीवाला और बकलोल बहादुर तीन घनिष्ठ मित्र थे। तीनो
एक ही कम्पनी में काम करते थे और एक फ्लैट किराए पर लेकर साथ मे रहा करते
थे। तीनो बहुत बुद्धिमान प्राणी थे और एक जमाने मे ध अक्षर से शुरू होने
वाली किसी कोचिंग से तैयारी करने के कारण अब नास्तिको का जीवन जी रहे थे।
तीनों ही Feminism, Socialism, Liberalism, Freedom of Choice for Woman in
Society इत्यादि उत्कृष्ट विचारधाराओं से लैस सज्जन थे और इन्हें अगर
तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग में रखा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। जिंदगी
मस्त और Co-operative मूड में चल रही थी।
स्वास्थ्य
वर्धन की दृष्टि से तीनों प्रातः एक पार्क में morning walk पर जाया करते
थे। एक रोज तीनो को पार्क में एक आकर्षक कन्या अपनी सहेलियों के साथ
अठखेलियाँ करती हुई दिख गई। और बातों बातों में उसकी मुस्कुराती नजर तीनो
पर पड़ गई। बस फिर क्या था तीनो उसे अपने त्रिभुज की उभयनिष्ठ भुजा बनाने के
सपने देखने लगे। अगले दिन से Gym, Green Tea, Allovera इत्यादि के सेवन से
शुरू हुई कवायद Dance classes जॉइन करने तक पहुंच गई। हर रोज morning walk
के दौरान उक्त कन्या का तीनो की ओर मुस्कुरा कर देखना तीनों को दिन पर दिन
घायल करता चला गया। फिर एक दिन वो भी आया जब "अबे मुझे देख रही थी", "भक
साले तेरे अंदर ऐसा क्या है", "अबे ओ तमीज से तेरी भाभी है" इत्यादि शब्दो
से शुरू हुआ ये सिलसिला तीनो दोस्तो में दरार का कारक बन गया। लड़की की
मुस्कान सारी बुद्धि हर ली। फ्लैट अलग हो गया, impression झाड़ने के लिए EMI
पे I-Phone और कार भी ले ली गई। इतने पर भी मामला शांत नही हुआ तो एक दिन
तीनो के बीच हाथापाई की नौबत आ गई। अंततः 6 महीने की लम्बी खींचतान के बाद
तय हुआ कि उसी से पूछा जाए कि भई कौन पसन्द है।
पूछने पर मैडम खिलखिला के हंस पड़ी और बोली
"अरे भक पागलों, मैं तुम लोगों को देख के क्यों मुस्कुराउंगी। मेरी तो शक्ल ही हँसमुख है।"
सपना टूट चुका था। लंका राख हो चुकी थी।
आजकल
रात में मदिरा का प्याला हाथ मे लिए, Feminism का चोला त्याग, तीनो मित्र
सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं का Generalization कर रहें है ।
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नीलेश मिश्रा
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