This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 94: Young Old Man (युवा वृद्ध)
डॉ अर्जुन और मैं रोज सुबह मॉर्निंग वॉक पर टहलने जाया करते थे। चूंकि हम दोनों ही विज्ञान से जुड़े प्रोफेशन में थे, इसलिए हमारी बातों का विषय भी विज्ञान ही हुआ करता था। कई बार हमें कोई नया विषय भी नही मिलता था जिस पर बात करते हुए वॉक पूरी की जा सके। एक रोज मैंने डॉ अर्जुन से शर्त लगाई कि आज कोई ऐसी नई बात बताइए जो मुझे विस्मित कर दे और जिसके बारे में मुझे कुछ भी पता न हो। डॉक्टर साहब मुस्कुराए और उन्होंने कहा "लगी 5000 की"। और हमने भी चट से हामी भर दी। हम भी इस गुमान में थे कि यार सारे weekly journals तो मैं घोल के पी जाता हूँ, कहाँ से लाएंगे ये नया मटेरियल।
"तो सुनो" - डॉक्टर साहब ने कहानी शुरू की। तुमने "सन 2002 के Anti-Ageing Drug के Human Trails Scandal के बारे में सुना है?"
"हाँ, वो तो 22 साल पुरानी बात हो गई, अब तो बहुत धुंधली यादें बची हैं। वही न जिसमे एक अमेरिकन रिसर्च फर्म ने इंडिया में लोगों पर बिना अनुमति के अपनी दवाओं के परीक्षण किये थे और एक वर्ष के भीतर ही बहुत सारे Volunteers मर गए थे।"
"हाँ वही, उसमें बहुत सारे नही, सभी volunteers मर गए थे, एक को छोड़कर।" - डॉ अर्जुन ने कहा।
"अच्छा, तुम्हे कैसे पता कि एक बच गया था।"- मैंने व्यंग्य और आश्चर्य मिश्रित लहजे में कहा।
"उस मामले में एक कमेटी गठित की गई थी उस बचे हुए आदमी को observe करने के लिए, उस कमेटी में मैं भी था।" - डॉ अर्जुन ने शांत भाव से कहा।
"ओह्ह क्या बात है यार। I am impressed. फिर क्या हुआ"- मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा।
"आनंद नाम था उसका, तब वो 55-57 साल का अधेड़ हुआ करता था। चेहरे पर झुर्रियां, अशक्त शरीर ऐसा लगता था जैसे कोई बात अंदर ही अंदर खाए जा रही हो उसको। उसकी बीवी 5 वर्ष पूर्व ही बीमारी के कारण चल बसी थी और उसका बेटा तब टाटा मोटर्स में प्रोडक्शन इंजीनियर हुआ करता था। शुरू में तो दोनों साथ रहते थे, लेकिन माँ के खत्म होने के बाद पहले उसका ट्रांसफर कहीं और हो गया और फिर उसकी शादी हो गई जिसके पश्चात वो अपनी ही दुनिया मे तल्लीन होता गया और पिता से विमुख होने लगा। आनन्द ने बताया था कि ये सिलसिला पहले मजबूरी में शुरू हुआ था, बेटा बाप को अकेला छोडक़र कहीं नही जाना चाहता था पर आनंद ने स्वयं ही उसे प्रेरित किया कि उसके चक्कर मे अपने कैरियर की बलि न दे। पहले तो हर हफ्ते घर आ जाता था लेकिन जैसे जैसे आनंद की उम्र ढलने लगी और बीमारियां उसे घेरने लगीं, बेटे का आना महीने , तिमाही और फिर साल में एक बार पर आ गया। आनंद कहा करता था कि दोष उसके बेटे का नही था, आखिर बूढ़े बाप की बीमारी का बोझ कब तक झेलेगा वो, उसके ऊपर और भी जिम्मेदारियाँ हैं। मुझे लगता है वो सिर्फ खुद को दिलासा देता था। शायद ये बुढ़ापे का अकेलापन उसे खाये जा रहा था और अब उसे जीवन का कोई मोह नही रह गया था। इसीलिए जब उस फर्म ने दवा के trial के लिए Volunteers मांगे, तो आनंद तुरंत तैयार हो गया था।"- डॉ अर्जुन यादों में डूब चुके थे।
"फिर क्या हुआ?"- मैंने कौतूहल वश पूछा।
डॉ अर्जुन- "हमारी कोशिकाओं के क्रोमोसोम्स के टिप पर एक सरंचना होती है Telomere जिसकी लंबाई हर कोशिका विभाजन के साथ घटती जाती है औऱ एक निर्धारित संख्या के बाद वो कोशिका फिर विभाजित नही होती। इस प्रकार Telomere यह सुनिश्चित करता है कि हमारा शरीर बूढ़ा होता रहे। वो अमेरिकन रिसर्च फर्म ऐसे दवाओं के ईजाद का काम कर रही थी जो इस Telomere की लंबाई घटने न दे। लेकिन जिन लोगो को ये दवा दी गई उनकी कोशिकाओं ने विभाजित होना ही बंद कर दिया नतीजतन वे मर गए, लेकिन आनंद नही मरा। उसके Telomere की लंबाई हर विभाजन के साथ बढ़ना प्रारम्भ हो गई।"
"मतलब उसमें Ageing की process reverse हो गई!!"- अब मुझे ये विषय आकर्षक लगने लगा था।
डॉ अर्जुन- "हाँ। सही समझे तुम। लेकिन उसकी Cell Growth uncontrolled होकर कैंसर का रूप न लेले इसलिए उसे गुप्त रूप से मेरे निर्देशन में दवाएँ दी जाती रहीं। सचमुच वो तेजी से जवान होने लगा। 5 वर्षों में उसकी सारी बीमारियां छू मंतर हो चुकी थी। Diabetes, BP सब चमत्कारिक ढंग से उसके चेहरे और शरीर की झुर्रियों सहित लुप्त हो गई और अब वह देखने मे भी अच्छा लगने लगा था । उसका दिमाग भी तेजी से जवान हो रहा था। यद्यपि वह रिकार्ड में 63 का हो चुका था लेकिन कोई भी देख के उसे यही कहता कि वो अभी अपने 40s में है। अब जब भी बेटा घर आता तो आनंद की आंख में वो चमक नही रहती थी जो पहले हुआ करती थी। हालांकि पोते का मोह कम नही हुआ था। 5 वर्ष और बीतते बीतते अब आनंद और उसके बेटे में फर्क करना मुश्किल था कि बेटा कौन है और बाप कौन। इधर उसका बेटा भी युवावस्था के अंतिम पड़ाव पर था। आधुनिक जीवनशैली की वजह से बीमारियों ने उसके शरीर को अपना घर बनाना प्रारम्भ कर दिया था। बीवी बच्चों का सुख अब सिर्फ उनके प्रति अपने उत्तरदायित्व निर्वहन तक सीमित था वो भी बिना किसी Return की आशा किये। आनंद अब अपनी रिटायरमेंट पूंजी का कुशलता पूर्वक प्रयोग करके बड़ा रियल एस्टेट कारोबारी बन चुका था। उसका दिमाग जीवन के 70 सालों के अनुभवों को अपने मे समाए अब पहले से ज्यादा ताकतवर हो चुका था। ये शायद जिंदगी ने उसे फिर से जीने का एक और मौका दिया था और वो इस मौके को बखूबी भुना रहा था। 5 साल और बीतने पर आनंद अपने बेटे से कहीं ज्यादा युवा लगने लगा था। उसका बेटा अपने पिता से धन, बल, रूप, स्वास्थ्य और बुद्धि हर प्रकार से गौण साबित हो रहा था। अब तो उसके बेटे का हर जानने वाला उसके बारे में कम और उसके पिता के चर्चे ज्यादा किया करता था। जहां एक ओर आनंद की वात्सल्य भावना पूरी तरह से समाप्त हो चुकी थी वहीं दूसरी ओर बेटा ईर्ष्या और घुटन से मरा जा रहा था। जब आनंद का बेटा अत्यंत रुग्ण अवस्था मे अस्पताल में भर्ती हुआ तब भी आनंद उसे देखने नही पहुंच सका क्योंकि एक वह एक बड़े क्लाइंट को नाराज नही कर सकता था। हालांकि उसने अपना फर्ज निभाया और अपने बेटे को पैसे भेज दिए थे। इस केस ने एक बात तो साबित कर दी थी कि करुणा, वात्सल्य और त्याग की भावना बूढ़े होते शरीर मे ही विकसित होती हैं। अशक्त मनुष्य सशक्त मनुष्य से इन्ही भावनाओ के आधार पर सहयोग की अपेक्षा कर सकता है और सभी प्रजातियां इसी सिद्धांत पर Evolve हुई हैं।"
"उसके बाद क्या हुआ?" - मैंने कौतूहल वश पूछा।
"पता नही, उसके बाद मुझे प्रोजेक्ट से हटा दिया गया था। पिछले साल जब बातों बातों में अपने Collegues से आनंद के बारे में पूछा था तो उन्होंने बताया कि आनंद ने आत्महत्या कर ली थी और उसका बेटा हार्ट अटैक से मर चुका था।"
"उसने आत्महत्या क्यों की ? वो तो बेहतरीन जिंदगी जी रहा था।"- मैंने प्रश्न किया।
"पता नही। ये केस क्लासिफाइड है और वो लोग इससे ज्यादा मुझे कुछ भी नही बताएंगे।"- डॉ अर्जुन ने उत्तर दिया।
"तो तुम क्या कहोगे - इस पूरे घटनाक्रम का क्या सबक रहा ? इसे ये माना जाए कि Parental Love सामर्थ्य और असामर्थ्य के बीच का संतुलन है । अथवा यह कि प्राकृतिक नियमों के साथ मनुष्य का किया खिलवाड़ हमेशा विनाशकारीअसंतुलन को प्रेरित करता है?" - मैंने Conclusive प्रश्न दगा।
"ये मैं तुम पर छोड़ता हूँ"- हर बार की तरह डॉ अर्जुन ने सारे निष्कर्षों की जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी।
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नीलेश मिश्रा
कहानी 94: Young Old Man (युवा वृद्ध)
डॉ अर्जुन और मैं रोज सुबह मॉर्निंग वॉक पर टहलने जाया करते थे। चूंकि हम दोनों ही विज्ञान से जुड़े प्रोफेशन में थे, इसलिए हमारी बातों का विषय भी विज्ञान ही हुआ करता था। कई बार हमें कोई नया विषय भी नही मिलता था जिस पर बात करते हुए वॉक पूरी की जा सके। एक रोज मैंने डॉ अर्जुन से शर्त लगाई कि आज कोई ऐसी नई बात बताइए जो मुझे विस्मित कर दे और जिसके बारे में मुझे कुछ भी पता न हो। डॉक्टर साहब मुस्कुराए और उन्होंने कहा "लगी 5000 की"। और हमने भी चट से हामी भर दी। हम भी इस गुमान में थे कि यार सारे weekly journals तो मैं घोल के पी जाता हूँ, कहाँ से लाएंगे ये नया मटेरियल।
"तो सुनो" - डॉक्टर साहब ने कहानी शुरू की। तुमने "सन 2002 के Anti-Ageing Drug के Human Trails Scandal के बारे में सुना है?"
"हाँ, वो तो 22 साल पुरानी बात हो गई, अब तो बहुत धुंधली यादें बची हैं। वही न जिसमे एक अमेरिकन रिसर्च फर्म ने इंडिया में लोगों पर बिना अनुमति के अपनी दवाओं के परीक्षण किये थे और एक वर्ष के भीतर ही बहुत सारे Volunteers मर गए थे।"
"हाँ वही, उसमें बहुत सारे नही, सभी volunteers मर गए थे, एक को छोड़कर।" - डॉ अर्जुन ने कहा।
"अच्छा, तुम्हे कैसे पता कि एक बच गया था।"- मैंने व्यंग्य और आश्चर्य मिश्रित लहजे में कहा।
"उस मामले में एक कमेटी गठित की गई थी उस बचे हुए आदमी को observe करने के लिए, उस कमेटी में मैं भी था।" - डॉ अर्जुन ने शांत भाव से कहा।
"ओह्ह क्या बात है यार। I am impressed. फिर क्या हुआ"- मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा।
"आनंद नाम था उसका, तब वो 55-57 साल का अधेड़ हुआ करता था। चेहरे पर झुर्रियां, अशक्त शरीर ऐसा लगता था जैसे कोई बात अंदर ही अंदर खाए जा रही हो उसको। उसकी बीवी 5 वर्ष पूर्व ही बीमारी के कारण चल बसी थी और उसका बेटा तब टाटा मोटर्स में प्रोडक्शन इंजीनियर हुआ करता था। शुरू में तो दोनों साथ रहते थे, लेकिन माँ के खत्म होने के बाद पहले उसका ट्रांसफर कहीं और हो गया और फिर उसकी शादी हो गई जिसके पश्चात वो अपनी ही दुनिया मे तल्लीन होता गया और पिता से विमुख होने लगा। आनन्द ने बताया था कि ये सिलसिला पहले मजबूरी में शुरू हुआ था, बेटा बाप को अकेला छोडक़र कहीं नही जाना चाहता था पर आनंद ने स्वयं ही उसे प्रेरित किया कि उसके चक्कर मे अपने कैरियर की बलि न दे। पहले तो हर हफ्ते घर आ जाता था लेकिन जैसे जैसे आनंद की उम्र ढलने लगी और बीमारियां उसे घेरने लगीं, बेटे का आना महीने , तिमाही और फिर साल में एक बार पर आ गया। आनंद कहा करता था कि दोष उसके बेटे का नही था, आखिर बूढ़े बाप की बीमारी का बोझ कब तक झेलेगा वो, उसके ऊपर और भी जिम्मेदारियाँ हैं। मुझे लगता है वो सिर्फ खुद को दिलासा देता था। शायद ये बुढ़ापे का अकेलापन उसे खाये जा रहा था और अब उसे जीवन का कोई मोह नही रह गया था। इसीलिए जब उस फर्म ने दवा के trial के लिए Volunteers मांगे, तो आनंद तुरंत तैयार हो गया था।"- डॉ अर्जुन यादों में डूब चुके थे।
"फिर क्या हुआ?"- मैंने कौतूहल वश पूछा।
डॉ अर्जुन- "हमारी कोशिकाओं के क्रोमोसोम्स के टिप पर एक सरंचना होती है Telomere जिसकी लंबाई हर कोशिका विभाजन के साथ घटती जाती है औऱ एक निर्धारित संख्या के बाद वो कोशिका फिर विभाजित नही होती। इस प्रकार Telomere यह सुनिश्चित करता है कि हमारा शरीर बूढ़ा होता रहे। वो अमेरिकन रिसर्च फर्म ऐसे दवाओं के ईजाद का काम कर रही थी जो इस Telomere की लंबाई घटने न दे। लेकिन जिन लोगो को ये दवा दी गई उनकी कोशिकाओं ने विभाजित होना ही बंद कर दिया नतीजतन वे मर गए, लेकिन आनंद नही मरा। उसके Telomere की लंबाई हर विभाजन के साथ बढ़ना प्रारम्भ हो गई।"
"मतलब उसमें Ageing की process reverse हो गई!!"- अब मुझे ये विषय आकर्षक लगने लगा था।
डॉ अर्जुन- "हाँ। सही समझे तुम। लेकिन उसकी Cell Growth uncontrolled होकर कैंसर का रूप न लेले इसलिए उसे गुप्त रूप से मेरे निर्देशन में दवाएँ दी जाती रहीं। सचमुच वो तेजी से जवान होने लगा। 5 वर्षों में उसकी सारी बीमारियां छू मंतर हो चुकी थी। Diabetes, BP सब चमत्कारिक ढंग से उसके चेहरे और शरीर की झुर्रियों सहित लुप्त हो गई और अब वह देखने मे भी अच्छा लगने लगा था । उसका दिमाग भी तेजी से जवान हो रहा था। यद्यपि वह रिकार्ड में 63 का हो चुका था लेकिन कोई भी देख के उसे यही कहता कि वो अभी अपने 40s में है। अब जब भी बेटा घर आता तो आनंद की आंख में वो चमक नही रहती थी जो पहले हुआ करती थी। हालांकि पोते का मोह कम नही हुआ था। 5 वर्ष और बीतते बीतते अब आनंद और उसके बेटे में फर्क करना मुश्किल था कि बेटा कौन है और बाप कौन। इधर उसका बेटा भी युवावस्था के अंतिम पड़ाव पर था। आधुनिक जीवनशैली की वजह से बीमारियों ने उसके शरीर को अपना घर बनाना प्रारम्भ कर दिया था। बीवी बच्चों का सुख अब सिर्फ उनके प्रति अपने उत्तरदायित्व निर्वहन तक सीमित था वो भी बिना किसी Return की आशा किये। आनंद अब अपनी रिटायरमेंट पूंजी का कुशलता पूर्वक प्रयोग करके बड़ा रियल एस्टेट कारोबारी बन चुका था। उसका दिमाग जीवन के 70 सालों के अनुभवों को अपने मे समाए अब पहले से ज्यादा ताकतवर हो चुका था। ये शायद जिंदगी ने उसे फिर से जीने का एक और मौका दिया था और वो इस मौके को बखूबी भुना रहा था। 5 साल और बीतने पर आनंद अपने बेटे से कहीं ज्यादा युवा लगने लगा था। उसका बेटा अपने पिता से धन, बल, रूप, स्वास्थ्य और बुद्धि हर प्रकार से गौण साबित हो रहा था। अब तो उसके बेटे का हर जानने वाला उसके बारे में कम और उसके पिता के चर्चे ज्यादा किया करता था। जहां एक ओर आनंद की वात्सल्य भावना पूरी तरह से समाप्त हो चुकी थी वहीं दूसरी ओर बेटा ईर्ष्या और घुटन से मरा जा रहा था। जब आनंद का बेटा अत्यंत रुग्ण अवस्था मे अस्पताल में भर्ती हुआ तब भी आनंद उसे देखने नही पहुंच सका क्योंकि एक वह एक बड़े क्लाइंट को नाराज नही कर सकता था। हालांकि उसने अपना फर्ज निभाया और अपने बेटे को पैसे भेज दिए थे। इस केस ने एक बात तो साबित कर दी थी कि करुणा, वात्सल्य और त्याग की भावना बूढ़े होते शरीर मे ही विकसित होती हैं। अशक्त मनुष्य सशक्त मनुष्य से इन्ही भावनाओ के आधार पर सहयोग की अपेक्षा कर सकता है और सभी प्रजातियां इसी सिद्धांत पर Evolve हुई हैं।"
"उसके बाद क्या हुआ?" - मैंने कौतूहल वश पूछा।
"पता नही, उसके बाद मुझे प्रोजेक्ट से हटा दिया गया था। पिछले साल जब बातों बातों में अपने Collegues से आनंद के बारे में पूछा था तो उन्होंने बताया कि आनंद ने आत्महत्या कर ली थी और उसका बेटा हार्ट अटैक से मर चुका था।"
"उसने आत्महत्या क्यों की ? वो तो बेहतरीन जिंदगी जी रहा था।"- मैंने प्रश्न किया।
"पता नही। ये केस क्लासिफाइड है और वो लोग इससे ज्यादा मुझे कुछ भी नही बताएंगे।"- डॉ अर्जुन ने उत्तर दिया।
"तो तुम क्या कहोगे - इस पूरे घटनाक्रम का क्या सबक रहा ? इसे ये माना जाए कि Parental Love सामर्थ्य और असामर्थ्य के बीच का संतुलन है । अथवा यह कि प्राकृतिक नियमों के साथ मनुष्य का किया खिलवाड़ हमेशा विनाशकारीअसंतुलन को प्रेरित करता है?" - मैंने Conclusive प्रश्न दगा।
"ये मैं तुम पर छोड़ता हूँ"- हर बार की तरह डॉ अर्जुन ने सारे निष्कर्षों की जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी।
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नीलेश मिश्रा
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