हिंदी दिवस:
पहले हिंदी देश प्रेम और एकता का प्रतीक थी, लोग हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान का नारा लगाते थे।
फिर हिंदी को प्राइवेट नौकरियों से निकाला जाने लगा। उसके बाद शिक्षा से और अब तो सार्वजनिक रूप से लोग यह इल्जाम लगने लगे हैं कि बड़ी बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी वालों को हाशिये पर रखा जाता है। नीतियां बनाने वाले महत्वपूर्ण पदों पर अब हिंदी अल्पसंख्यक है।
हिंदी अब सिर्फ उनकी मजबूरी बनकर रह गई है जो कतिपय कारणों से अंग्रेजी Afford नहीं कर सके या कर नही सकते। हर साल एक दिन हिंदी दिवस मना कर हम दुनिया को बेवकूफ बना सकते हैं पर आने वाली पीढ़ी को नहीं। आजादी के समय से ही शुरू हुई अंग्रेजी और हिंदी की जंग, बढ़िया रोजगार के अवसरों, अदूरदर्शी शिक्षा नीतियों, कुलीन वर्ग की अंग्रेजियत को लेकर हठधर्मिता और सरकारों के उदासीन रवैये के चलते अब अंग्रेजी के पक्ष में जा चुकी है।
हिंदी मातृभाषा न बनकर, मात्र एक भाषा बन कर रह गई है।
--
सरकारी आदमी
(#SarkaariAdmi)
EmoticonEmoticon