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लघु लेख- Economics of Love & Hate: Original Contents by #SarkaariAdmi

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

Economics of Love & Hate:
मैं जब 9th में था तो फिजिक्स पढ़ाने वाली मैम मुझे काफी पसंद थीं। उनकी good books में शामिल होने के लिए मैं रोजाना होमवर्क पूरे कर के लाया करता था। उन्हें इंप्रेस करने के चक्कर में 11th और 12th तक की फिजिक्स बुक पढ़ ली थी। उस जमाने में इंटरनेट मोबाइल पर नहीं था, साइबर कैफे में 15 रुपए घंटा खर्च करने पड़ते थे। इसके बावजूद, इंटरनेट पर आइंस्टीन की theory पढ़ने जाया करता था। यद्यपि तब ज्यादा कुछ पल्ले नहीं पड़ता था पर मैम के श्री मुख से "शाबाश" शब्द सुनना मेरे लिए किसी वर्ल्ड कप से कमतर नहीं होता था। लेकिन इतने सब के बावजूद मैम को प्रिय थी सुरनिधी ! क्यों? क्योंकि वो मैम से पूरे क्लास की चुगली किया करती थी। मैम की खबरी थी वो ससुरी। उसी समय मैं समझ गया था कि प्रेम पाना बहुत ही दुष्कर मार्ग है, success highly doubtful है। जबकि नफरत फैलाना आसान भी है और प्रभावी भी। स्वयं देखिए नर्सरी से लेकर ग्रेजुएशन तक पढ़ाया जाता है कि सभी धर्म एक समान हैं, आपस में सब भाई भाई, जाति, भाषा सबसे ऊपर राष्ट्र प्रेम है, And so on। लेकिन Student life ख़तम होने से पहले ही हम इन्हीं आधारों पर नफरत करना सीख चुके होते हैं। देश के चुनाव भी लोगों को बांट कर ही लड़े और जीते जाते हैं। प्रेमी जोड़े कम और उन्हें पीटने वाले ज्यादा पाए जाते हैं। लड़की की अस्मिता की रक्षा करने वाले अल्प और उसके भक्षक अधिसंख्य। परिवार को साथ ले कर चलने वाले कम और उसे तोड़ने वाले अधिक । क्यों? क्योंकि प्यार और नफरत के ग्राफ में, नफरत का ग्राफ ज्यादा Cost Effective होता है।
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सरकारी आदमी

14.02.2020

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