This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 102: Men from Mars, Women from Venus
"तुम हो कहाँ पर तुरंत घण्टाघर चौराहे पर पहुंचो।"- फोन पर श्रीमती जी की आवाज सुनकर वकील साहब थोड़ा हड़बड़ाए।
"अरे यार कोर्ट चल रही है। क्लाइंट का केस अगले नम्बर पर लगा हुआ है। तुम बताओ तो सही हुआ क्या है?"- वकील साहब ने श्रीमती जी से अकारण बुलाए जाने का कारण जानना चाहा।
"जाओ क्लाइंट के यहाँ ही चले जाना आज। घर मत आना। यहाँ सरे राह बीवी की इज्जत उतारी जा रही है और ये अपनी वकालत चलाने में जुटे हैं। (स्वर बेहद धीमा होता हुआ) मौसा जी सही कहे थे, वकील से शादी करनी ही नही चाहिए।"
"क्या इज्जत! रुको तुम वहीं मैं तुरन्त पहुंच रहा हूँ। चौरसिया बार के लोगों को पकड़ो और बोलो घण्टाघर चौराहे पहुंचे तुरन्त। मेरी बीवी का matter हो गया है।" वकील साहब झटपट गाड़ी उठाए और चल दिए घंटाघर की ओर।
घण्टाघर चौराहे के पास पहुंचे तो देखा वहां अच्छी खासी भीड़ जमा है। वकील साहब का कलेजा धक धक करने लगा। गाड़ी साइड में लगाकर भीड़ को चीरते हुए आगे बढे और बीचों बीच पहुंचे जहां उन्होंने पाया कि दो महिलाएं आपस में लड़ रही हैं। उनमें से एक महिला के पीछे डबल स्टार वर्दीधारी आदमी किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा है जबकि दूसरी महिला उन्हीं की धर्मपत्नी हैं। वकील साहब तुरंत बीवी के पास पहुंचे और कुशल क्षेम जानना चाहा कि तभी बीवी उनके कंधे पर हाथ रख कर सामने वाली महिला की तरफ चेतावनी भरे लहजे में तर्जनी दिखाते हुए बोल पड़ीं- "बहुत पुलिस की बकैती झाड़ रही थी। ये देख मेरा पति वकील है वकील। ये थाना पुलिस की धमकी मत देना मुझे समझी। ये सब मेरे पति का रोज का धंधा है। तेरा पति दरोगा है तो तू किसी को भी ठोकती हुई चलेगी। नौकरी छुड़वा दूंगी तेरे पति की। (वकील साहब की ओर मुखातिब होते हुए) तुम बोलते क्यों नहीं कुछ इसको।"
वकील साहब अबअबब कर ही रहे थे कि दूसरे पक्ष की महिला हमलावर हो उठी-"क्या वकील वकील चिल्ला रही हो। ऐसे तमाम वकील (दरोगा जी की ओर इशारा करते हुए) इनके खुशामद करने आते हैं रोज। एक तो मेरी स्कूटी में टक्कर मार दी ऊपर से धमकी देती है। (दरोगा जी की ओर मुखातिब होकर) तुम तुरन्त इनके गाड़ी के कागज चेक करो। पक्का इसके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं होगा। इसको और इसके पति दोनों को आज मैं जेल भिजवा के रहूंगी।"
वकील साहब और दरोगा जी दोनों ने एक दूसरे को देखा, फिर सामने खड़ी गिरी हुई अवस्था में दोनों स्कूटियों को देखा जो उनकी धर्मपत्नियाँ चलाते टाइम एक दूसरे में भिड़ा दी थीं और आस पास मौजूद लोगों की भीड़ को देखा जो तमाशबीन बन झगड़ा देख रहे थे। दोनों ने पहले अपनी अपनी बीवियों को "अब तुम घर जाओ, इस साले को मैं देखता हूँ" कहकर फ्रंट पोजिशन से बैकफुट पर जाने को कहा। दोनों स्कूटियाँ उठाईं और भीड़ को फटकारा "हटों यहां से। ये क्या यहां कोई तमाशा चल रहा है। ट्रैफिक जाम करवाए पड़े हो सब। भागो यहां से।" भीड़ इधर उधर हो गई। दोनों महिलाएं अपने पतियों को "छोड़ना मत इसे" की हिदायत देते हुए अपने अपने रास्ते निकल गईं। तब तक एक जिप्सी में कुछ पुलिस वाले और दूसरी तरफ से एक सफारी में कुछ वकील आकर इकट्ठा हो गए। "क्या हुआ कौंन है साला" - दोनों पक्षों से यही प्रश्न उठा जिसे दरोगा जी और वकील साहब ने "अरे कुछ नहीं मैटर सॉल्व हो गया है अब" कहकर दोनों पक्षों को शांत करा दिया।
"चलो बेटा तुमको शाम को देखते हैं।"- दरोगा ने वकील से कहा। जवाब में वकील साहब भी बोल पड़े "आओ हम भी देखते हैं।" और यह कहकर दोनों दलबल के साथ अपने अपने स्थान को लौट गए।
शाम ढलने के बाद दोनों Royal Stag हाथ में लिए "महाभयंकर महाठंडी महाबियर" शॉप के बाहर साथ में जाम छलकाते हुए दिखे।
"यार बाकि सब तो ठीक है पर वो नौकरी से निकलवाने की बात मुंझे बहुत बुरी लगी।"- दरोगा जी ने कहा।
"और मुझे और मेरी बीवी को जेल में डालने की बात- उसका क्या। मुझे भी बहुत खराब लगा।"- वकील साहब ने अपना पक्ष रखा।
फिर दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और ठहाका मार कर हंसने लगे।
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नीलेश मिश्रा
"तुम हो कहाँ पर तुरंत घण्टाघर चौराहे पर पहुंचो।"- फोन पर श्रीमती जी की आवाज सुनकर वकील साहब थोड़ा हड़बड़ाए।
"अरे यार कोर्ट चल रही है। क्लाइंट का केस अगले नम्बर पर लगा हुआ है। तुम बताओ तो सही हुआ क्या है?"- वकील साहब ने श्रीमती जी से अकारण बुलाए जाने का कारण जानना चाहा।
"जाओ क्लाइंट के यहाँ ही चले जाना आज। घर मत आना। यहाँ सरे राह बीवी की इज्जत उतारी जा रही है और ये अपनी वकालत चलाने में जुटे हैं। (स्वर बेहद धीमा होता हुआ) मौसा जी सही कहे थे, वकील से शादी करनी ही नही चाहिए।"
"क्या इज्जत! रुको तुम वहीं मैं तुरन्त पहुंच रहा हूँ। चौरसिया बार के लोगों को पकड़ो और बोलो घण्टाघर चौराहे पहुंचे तुरन्त। मेरी बीवी का matter हो गया है।" वकील साहब झटपट गाड़ी उठाए और चल दिए घंटाघर की ओर।
घण्टाघर चौराहे के पास पहुंचे तो देखा वहां अच्छी खासी भीड़ जमा है। वकील साहब का कलेजा धक धक करने लगा। गाड़ी साइड में लगाकर भीड़ को चीरते हुए आगे बढे और बीचों बीच पहुंचे जहां उन्होंने पाया कि दो महिलाएं आपस में लड़ रही हैं। उनमें से एक महिला के पीछे डबल स्टार वर्दीधारी आदमी किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा है जबकि दूसरी महिला उन्हीं की धर्मपत्नी हैं। वकील साहब तुरंत बीवी के पास पहुंचे और कुशल क्षेम जानना चाहा कि तभी बीवी उनके कंधे पर हाथ रख कर सामने वाली महिला की तरफ चेतावनी भरे लहजे में तर्जनी दिखाते हुए बोल पड़ीं- "बहुत पुलिस की बकैती झाड़ रही थी। ये देख मेरा पति वकील है वकील। ये थाना पुलिस की धमकी मत देना मुझे समझी। ये सब मेरे पति का रोज का धंधा है। तेरा पति दरोगा है तो तू किसी को भी ठोकती हुई चलेगी। नौकरी छुड़वा दूंगी तेरे पति की। (वकील साहब की ओर मुखातिब होते हुए) तुम बोलते क्यों नहीं कुछ इसको।"
वकील साहब अबअबब कर ही रहे थे कि दूसरे पक्ष की महिला हमलावर हो उठी-"क्या वकील वकील चिल्ला रही हो। ऐसे तमाम वकील (दरोगा जी की ओर इशारा करते हुए) इनके खुशामद करने आते हैं रोज। एक तो मेरी स्कूटी में टक्कर मार दी ऊपर से धमकी देती है। (दरोगा जी की ओर मुखातिब होकर) तुम तुरन्त इनके गाड़ी के कागज चेक करो। पक्का इसके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं होगा। इसको और इसके पति दोनों को आज मैं जेल भिजवा के रहूंगी।"
वकील साहब और दरोगा जी दोनों ने एक दूसरे को देखा, फिर सामने खड़ी गिरी हुई अवस्था में दोनों स्कूटियों को देखा जो उनकी धर्मपत्नियाँ चलाते टाइम एक दूसरे में भिड़ा दी थीं और आस पास मौजूद लोगों की भीड़ को देखा जो तमाशबीन बन झगड़ा देख रहे थे। दोनों ने पहले अपनी अपनी बीवियों को "अब तुम घर जाओ, इस साले को मैं देखता हूँ" कहकर फ्रंट पोजिशन से बैकफुट पर जाने को कहा। दोनों स्कूटियाँ उठाईं और भीड़ को फटकारा "हटों यहां से। ये क्या यहां कोई तमाशा चल रहा है। ट्रैफिक जाम करवाए पड़े हो सब। भागो यहां से।" भीड़ इधर उधर हो गई। दोनों महिलाएं अपने पतियों को "छोड़ना मत इसे" की हिदायत देते हुए अपने अपने रास्ते निकल गईं। तब तक एक जिप्सी में कुछ पुलिस वाले और दूसरी तरफ से एक सफारी में कुछ वकील आकर इकट्ठा हो गए। "क्या हुआ कौंन है साला" - दोनों पक्षों से यही प्रश्न उठा जिसे दरोगा जी और वकील साहब ने "अरे कुछ नहीं मैटर सॉल्व हो गया है अब" कहकर दोनों पक्षों को शांत करा दिया।
"चलो बेटा तुमको शाम को देखते हैं।"- दरोगा ने वकील से कहा। जवाब में वकील साहब भी बोल पड़े "आओ हम भी देखते हैं।" और यह कहकर दोनों दलबल के साथ अपने अपने स्थान को लौट गए।
शाम ढलने के बाद दोनों Royal Stag हाथ में लिए "महाभयंकर महाठंडी महाबियर" शॉप के बाहर साथ में जाम छलकाते हुए दिखे।
"यार बाकि सब तो ठीक है पर वो नौकरी से निकलवाने की बात मुंझे बहुत बुरी लगी।"- दरोगा जी ने कहा।
"और मुझे और मेरी बीवी को जेल में डालने की बात- उसका क्या। मुझे भी बहुत खराब लगा।"- वकील साहब ने अपना पक्ष रखा।
फिर दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और ठहाका मार कर हंसने लगे।
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नीलेश मिश्रा
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