This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
"सर इंटरव्यू 30 सेकंड में शुरू हो रहा है। आपको जो भी बोलना हो वो आप इस कैमरे के आगे देख के बोलियेगा। ओके?"
"ओके"
"ठीक है। रस्तोगी कैमरा स्टार्ट करो। माइक चेक। 3, 2, 1 स्टार्ट।
दोस्तों स्वागत है समीर अग्निहोत्री जी का जो यूपी के भूतपूर्व डीजीपी रह चुके हैं और जिन्हें डिजिटल सर्विलांस और डीएनए डेटाबैंक प्रोग्राम लागू कराने का श्रेय जाता है। लेकिन आज इन्हीं सबको लेकर ये ह्यूमन राइट्स और सिविल लिबर्टीज ग्रुप्स के निशाने पर हैं। समीर जी आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे- क्या वो फैसला सही था आपका?"
समीर जी थोड़ी देर खामोश रहते हैं, और फिर जर्नलिस्ट को एक पेन ड्राइव थमा देते हैं।
"मैं चाहूंगा कि 6 साल पुराना ये वीडियो आप दर्शकों को दिखाएं।"
"पर सर मेरा प्रश्न तो..."
"आपके उसी प्रश्न का उत्तर है इसमें।"
"ठीक है। पेन ड्राइव की वीडियो को प्ले किया जाए।"
वीडियो में एक अधेड़ उम्र की महिला नजर आती है जो अपना बयान पुलिस के सामने दर्ज करा रही है।
"ठीक है माता जी ये आपका बयान है। एक बार आप स्वयं जोर जोर से बोल कर इसे पढ़ दें ताकि कोर्ट के सामने जाने पर बयानों में कोई विरोधाभास न रह आए।"
"इक्कीस की रात को हम लोग नोएडा से बुलन्दशहर एक रिश्तेदार के यहां अपनी फोर व्हीलर से जा रहे थे। गाड़ी में मैं, मेरे पति, मेरे बड़े बेटे-बहु और उनकी बेटी थी। बुलंदशहर हाइवे के पास हमारी गाड़ी अचानक पंचर हो गई। गाड़ी रुकते ही 6-7 लोगों ने हमारी गाड़ी को घेर लिया और उनमें से एक आदमी ने बंदूक दिखाते हुए हमें गाड़ी से बाहर निकलने का इशारा किया। जब हम नही निकले तो वो लोग हमारी गाड़ी के शीशे तोड़कर हमे जबरन बाहर निकालने लगे। उन्होंने हमारा सारा नकद जेवर सब लूट लिया। फिर उनमें से एक आदमी मेरी बहु के ऊपर फब्तियां कसने लगा। इस बात का मेरे बेटे ने विरोध किया तो उन लोगों ने उसे हमारे सामने गोली मार दी। मेरा बेटा ऑन द स्पॉट मर गया। और उन लोगों ने उसकी लाश के बगल में ही बारी बारी से हम तीनों......(रोते हुए) बस साहब अब और नही पढ़ सकती। (सिसकारियों का तीव्र शोर)।"
वीडियो बन्द हो जाता है। जर्नलिस्ट की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
"ये रिकार्डिंग आपके प्रश्न का आधा उत्तर ही देता है। पूरा उत्तर और भी भयावह है। क्या आप सुनना पसंद करेंगी।"
"यस सर आप दर्शको को बताइए कि पूरा सच क्या था।"
"इस घटना के अगले दिन खबर फैलते ही पूरे सूबे में सियासी घमासान मच गया। 6 महीने बाद चुनाव थे। पहले से ही महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को चुनावी मुद्दा बना चुके विरोधी पार्टियों के लिए इस घटना ने आग में घी का काम किया। सरकार को भी अपनी लाज बचानी थी। पुलिस पर काफी दबाव था अपराधियों को तुरंत पकड़ने का। उन दिनों उस इलाके में कई ऐसे गैंग सक्रिय थे जो हाई वे पर Poor Police Petrolling और Surveillance इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी का फायदा उठा कर राहगीरों से लूटपाट को अंजाम दिया करते थे। शक की सुई खैबर गैंग पर थी। ऐसी खबर मिली थी कि उसका सरगना पाशा घटना के बाद से ही गायब है। शक और गहरा गया था। 1 हफ्ते बीत चुके थे। लोग सड़कों पर उतर आए थे। 8 वें दिन पाशा को मेरठ से गिरफ्तार किया गया और उसने मीडिया के सामने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया। शिनाख्त परेड में पीड़ित परिवार की महिलाओं ने अपराधियों की पहचान कर ली और केस closed हो गया।"
"तो इसमें भयावहता कहाँ है?"
"भयावहता !!.... 8 महीने बाद चंडीगढ़ पुलिस ने लूटपाट और हत्या के आरोप में सगीर कालिया और उसके गैंग को गिरफ्तार किया जिन्होंने स्वीकार किया कि उक्त पीड़ित परिवार के साथ उस वारदात को उन्हीं लोगों ने अंजाम दिया था।"
"क्या! ये कैसे हो सकता है?"
"आप आज ये कह रहीं हैं क्योंकि अब डीएनए बैंक होने की वजह से ऐसा होना नामुमकिन है। लेकिन तब ऐसा कुछ नहीं था। फॉरेंसिक जांच में जब पीड़ित महिलाओं और सगीर व उसके साथियों का डीएनए सैंपल जाँचा गया, तो इस गैंग का कथन सही साबित हुआ।"
"लेकिन पाशा का कबूलनामा और वो शिनाख्त परेड उसका क्या!"
"ये गैंगें आए दिन लोगों से लूटपाट, व्यभिचार किया करती थीं। कई मामलों में या तो लोग लोक लाज और भय से शिकायत ही नही दर्ज करते थे या करते भी थे तो कभी लोकल पुलिस की मिलीभगत या अपने एरिया में क्राइम रेट कम दिखाने के दबाव के चलते वो मामले ही दबा दिए जाया करते थे। पाशा और उसकी गैंग ने इतनी वारदातों को अंजाम दिया था कि उसको खुद याद नहीं था कि किस वाली घटना के लिए उसको पकड़ा गया है। जहां तक शिनाख्त परेड का सवाल है , पीड़ित महिलाओं ने परेड से पहले स्वयं कहा था कि रात की घटना थी और समय भी ज्यादा बीत चुका था इसलिए उन्हें अपराधियों के चेहरे याद नहीं थे। पर मामले को जल्दी Close भी करना था, वरना प्रदेश में लॉ एंड आर्डर की सिचुएशन बिगड़ सकती थी। पुलिस एकदम sure थी कि यही अपराधी है, इसलिए उन्होंने पीड़ित पक्ष से सहयोग के लिए कहा। वैसे भी उस परिवार ने अपना बहुत खो दिया था। न्याय मिलने की आस में उन्होंने जो बन पड़ा किया।"
"पर सर डीएनए का मिलान तो पाशा गैंग की भी की जा सकती थी, तो ..."
"उसने अपना सैम्पल देने से मना कर दिया था। उसे डर था कि कहीं पुराने मामले भी न खुल जाए। और तत्कालीन कानून किसी की इच्छा के विरुद्ध उसके शारीरिक घटकों को As an evidence कोर्ट में पेश करना prohibit करता था।"
"ओह्ह! ये तो काफी भयावह था!"
"नहीं भयावह ये नहीं था, असली भयावहता तो इस बात की है कि अगर चंडीगढ़ पुलिस असली गुनाहगारों को किसी दूसरें मामले में न पकड़ती और वो अपना पुराना जुर्म न कबूल करते तो... क्या होता! न्याय न मिलने से भी भयावह है न्याय मिलने की झूठी तसल्ली।"
"ओह्ह तो इसलिए आपने डीएनए...."
"जी हाँ। नई गवर्नमेंट form होने के बाद, महिला सुरक्षा और अपराध रोकने के लिए High Powered Committee बनी, जिसका Presenting Officer मुझे बनाया गया। ये घटना मेरे जेहन में ताजा थी और पुलिस में इतने साल रहने के अनुभव ने मुझे इस प्रोग्राम के लिए प्रेरित किया। लेकिन सबसे बड़ी बात ये थी कि तत्कालीन सरकार इस योजना के execution के लिए दृढ़ संकल्प थी।"
"आप पर यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि आपने बिना लोगों की मर्जी या जानकारी के उनके बायोलॉजिकल
सैम्पल्स कलेक्ट किये, इसके लिए अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के सामने आपकी पेशी भी है। आप इस पर क्या कहेंगे।"
"देखिए उस दौरान हमारा prime फोकस इस बात पर था कि एक ऐसा Data Bank बने जिसमें प्रदेश की समस्त जनता की डीएनए Information उनके आधार डेटा के साथ store रहे। हम एक ऐसा सिस्टम चाहते थे जिससे कोई भी अपराधी प्रदेश में अपराध करके बच न सके। लेकिन सभी लोगों में से अपराधी कौन है?-यह पता लगाने के लिए हमे प्रदेश के सभी नागरिकों का data चाहिए था। केंद्र की सरकार भी इस योजना में हमारे समर्थन में थी। बस सब कुछ गोपनीय ढंग से होना इस प्रोग्राम की एकमात्र शर्त थी। आधार के कारण हमारे पास बॉयोमेट्रिक और Facial Recognition System implement करने का सारा सिस्टम पहले से ही मौजूद था, आधार के साथ मोबाइल नम्बर लिंक करवाने से अब हम टारगेट की लाइव लोकेशन भी ट्रैक कर सकते थे। मौका-ए-वारदात पर पाए गए डीएनए सैम्पल को हम अपने Databank से मैच करा कर अब मिनटों में केस सॉल्व कर सकते थे with concrete evidence जिसे court भी नही नकार सकती थी। सब कुछ बढ़िया चल रहा था। असली अपराधियों की धड़ पकड़ जल्दी होने और उन्हें त्वरित सजा मिलने से अपराध की दर पर अंकुश भी लगने लगा था। सब बढ़िया चल रहा था।"
"लेकिन इतने सारे लोगों का बायो सैम्पल आपने कलेक्ट कैसे किया?"
"इसे आप किस्मत का खेल कहिए या ऊपर वाले की इच्छा। 5 साल पहले जो वैश्विक महामारी फैली थी, उसी में Mass Testing के नाम पर Health teams ने जो सैम्पल कलेक्ट किये थे, उसी का यूज हमने अपना purpose solve करने के लिए कर लिए।"
"पर ये तो गलत था न!"
"कोई भी काम गलत है या सही ये करने वाली की मंशा पर निर्भर करता है। हमारा उद्देश्य एकदम सही था -अपराध का खत्मा। हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि नव गठित सरकार की मंशा क्या होगी। अगर मुझे हल्का सा भी अभास होता कि सत्ता के सर्वोच्च पद पर आसीन लोग अपने Animal Instincts को मानवता से ऊपर रख देंगे, तो मैं खुद को इस प्रोग्राम के लागू होने से पहले ही गोली मार लेता।"
"तो क्या आप मानते हैं कि 4 महीने पहले हुए एक वर्ग विशेष के लोगों की एक रहस्यमय बीमारी से हुई मौतें Mass Genocide षड्यंत्र का हिस्सा थीं और इसमे कहीं न कहीं वर्तमान प्रदेश सरकार के लोगों का हाथ है?"
"मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैं केवल इतना जनता हूँ कि डीएनए डाटाबैंक में stored इंफॉर्मेशन का उपयोग ऐसे वायरस डिज़ाइन करने में किया जा सकता है जो एक वर्ग विशेष के लोगों को ही इन्फेक्ट करें और हाँ इस प्रकार की तकनीक अगर हिटलर के पास होती तो वो एक पूरी नस्ल को खत्म करने के लिए इसका प्रयोग जरूर करता।"
"आपने अपना कीमती समय हमारे और दर्शकों की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए दिया, इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। तो दर्शकों ये थे समीर अग्निहोत्री जी। जिन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों के सिलसिले में अपना पक्ष आपके सामने रखा।
रस्तोगी कैमरा ऑफ करो।"
नीलेश मिश्रा
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